सब बच जाएंगे… इतनी बड़ी कंपनी और ऐसी जानलेवा सवारी, पुलिस-आरटीओ को इतनी खटारा बस नहीं दिखी, खदान ठेकेदार भी 50 फीट गड्ढा छोड़ गए

- दुर्घटनाग्रस्त बस सीजी-07 सी 7783 दरअसल 3 अक्टूबर 2007 को दुर्ग आरटीओ में रजिस्टर्ड हुई थी।वाहन का नाम टाटा-709 दर्ज है। यह वहीं के किसी गुप्ता के नाम पर है। दस्तावेजों में इंश्योरेंस 2 अक्टूबर 2024 तक के लिए वैध है और नेशनल इंश्योरेंस कंपनी से करवाया गया है। फिटनेस का स्टेटस क्लीयर नहीं है। गाड़ी 3 अक्टूबर 2022 को 15 साल पुरानी हो चुकी है। फिटनेस की डेट 2021 की है। परिवहन वाले ये नहीं बता रहे हैं कि कब एक्सपायर्ड हुआ।
कलेक्टर ने जांच के आदेश दिए… जिम्मेदार सरकारी अमले के साहब तो वही हैं
दुर्ग कलेक्टर ने भीषण बस हादसे की मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिए हैं। जांच रिपोर्ट 30 दिन में देनी है, जांचने के लिए ऐसा कुछ नहीं है, जो छिपा हो। सब नजरों के सामने है। घटनास्थल ही हर किसी की गलतियां बता रहा है। द स्तंभ टीम मंगलवार को आधी रात मौके पर पहुंची तो पाया कि वहां हादसा अब तक नहीं हुआ था, यह भाग्य ही था। बस जिस रास्ते से रोजाना केडिया डिस्टलरी से दुर्ग में नेहरूनगर तक जाती थी, मेन रोड से पहले तक वह रास्ता कच्चा है। चौड़ाई बमुश्किल 10 फीट होगी। घटनास्थल तो बेहद खतरनाक है। एक तरफ ठेकेदार मुरुम निकालकर करीब 20 फीट गड्ढा छोड़ गए, तो दूसरी ओर ठेकेदार ने गिट्टी निकालकर 50 फीट की खड़ी खाई बना दी। बस, इन दोनों जानलेवा गड्ढों के बीच में जो जगह है, वहीं से बस बरसों से आना-जाना कर रही थी। मामला इसलिए संगीन है, क्योंकि ठेकेदारों को खदान का गड्ढा छोड़कर जाने की मनाही है। उसे गड्ढा भरना है और पेड़-पौधे भी लगाने हैं। इसे माइनिंग विभाग के अफसरों और इंस्पेक्टरों को देखना है। लेकिन न किसी ने जिम्मेदारी समझी, न किसी ने देखा। इस लापरवाही की अंतिम जवाबदारी तो दुर्ग कलेक्टर की भी है, लेकिन उनका काम जांच करवाना है। जांच के बिंदु अभी तय होने हैं, लेकिन घटनास्थल जाएं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वहां कौन-कौन जिम्मेदार हैं।
अब इस हादसे में दूसरी बड़ी जानलेवा खामी है खटारा बस। जो बस दुर्घटनाग्रस्त हुई, उसका रजिस्ट्रेशन 16 साल पुराना है, 2007-08 का। इस लिहाज से बस का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। बस का इंश्योरेंस नहीं था, जाहिर है कि इस वजह से फिटनेस भी नहीं थी। जैसे ही यह बस डिस्टलरी से कच्चे रास्ते से होती हुई कुम्हारी हाईवे पहुंचती होगी, तो वहां से नेहरूनगर तक चार थाने सड़क पर ही हैं। कुम्हारी, चरौदा, भिलाई-छावनी और नेहरूनगर। चारों की पुलिस बहुत एक्टिव है। इस रोड पर ट्रैफिक पुलिस भी काफी सक्रिय रहती है। बिना इंश्योरेंस, बिना फिटनेस की यह बस रोज दो बार चार थानों को क्रास कर रही थी, लेकिन किसी की नजर नहीं पड़ी। परिवहन उड़नदस्ते बाज की तरह घूमते हैं, लेकिन उन्हें भी यह बस कभी नहीं दिखी। यह आशंका भी है कि पुलिस और परिवहन वालों से कुछ छिप नहीं सकता। बस भी पकड़ी ही गई होगी, लेकिन अपरिहार्य कारणों से छोड़ी गई होगी। हैरतअंगेज यह है कि केड़िया डिस्टलरी जैसी बड़ी कंपनी के कामगार खटारा बस में ढोए जा रहे थे, यह कंपनी के जिम्मेदार कर्मचारियों को कभी नजर नहीं आया। खटारा बस 35-40 कर्मचारियों को लेकर रोजाना निर्बाथ चलती रही। केड़िया वाले इसे निकालते रहे, पुलिस और परिवहन वालों की रोक-टोक के बिना यह चलती रही।
तीसरा मामला नगरीय संस्थाओं से जुड़ा है। पहले तो यही स्पष्ट नहीं है कि यह आम रास्ता था या नहीं। अगर आम रास्ता नहीं है, तब यहां से बसें बरसों से क्यों गुजर रही थीं। अगर आम रास्ता है, तो यहां सुरक्षा के इंतजाम क्यों नहीं थे। द स्तंभ टीम रात में मौके पर पहुंची, तो वहां इमरजेंसी लाइटें जलाई गई थीं, वर्ना इसके अलावा रास्ते पर घटाटोप अंधेरा था और बस यहीं से रात में गुजरती थी। दोनों खदानों के बीच जो रास्ता है, उसकी चौड़ाई इतनी ही है कि कोई भी गाड़ी सिर्फ सीधे ही गुजर सके। स्टेयरिंग जरा उधर-उधर हुआ तो गाड़ी सीधे गड्ढे में। इस पर दो-तीन दिन पहले मुरुम डलवाई गई थी और उसके बाद से दो-तीन बार बारिश हो चुकी थी। इस वजह से मुरुम गीली थी। घटनास्थल को देखकर अंदाजा यही लगता है कि बस भीगी मुरुम से ही फिसली होगी। वहां इतनी जगह ही नहीं थी कि अगर गाड़ी अनियंत्रित हो जाए तो उसे किसी तरह काबू में लाया जा सके। क्योंकि उससे पहले ही गाड़ी गड्ढे में जा चुकी होगी, जैसा मंगलवार की रात हुआ। एक और बात, अगर केड़िया डिस्टलरी इस रास्ते का बरसों से उपयोग कर ही थी, तब हैरतअंगेज ही है कि कुम्हारी की नगरीय संस्थाओं ने डिस्टलरी जैसी फर्म के साथ इस रास्ते को डेवलप करने का प्रयास अब तक क्यों नहीं किया। यहां तक कि एक स्ट्रीट लाइट नहीं लगा पाए। इस तरह, रास्ते की अव्यवस्था के लिए नगरीय निकाय के साथ-साथ डिस्टलरी की भी जिम्मेदारी बनती है।