प्रकाश स्तंभ

भारतमाला स्कैमः दो एसडीएम ने बांटा मुआवजा, अभी उनके नाम नहीं… 3 कलेक्टरों के कार्यकाल में स्कैम, तकनीकी तौर पर वे निर्दोष… गडकरी ने सीधे बताया था, तब हुआ एक्शन

सीएम विष्णुदेव साय की कैबिनेट ने हाल में अभनपुर में भारतमाला सड़क के मुआवजे में तकरीबन 43 करोड़ रुपए के स्कैम की जांच आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को सौंपी है। छत्तीसगढ़ की एजेंसी ईओडब्लू इस समय किसी भी स्कैम में परफेक्ट इन्वेस्टिगेशन के मोड में आ चुकी है, इसलिए और परतें उधड़ेंगी। इस स्कैम में कई ऐसी जानकारियां हैं, जो सामने आनी हैं। इनमें से कुछ जानकारियां द स्तम्भ को मिली हैं, जिनका संक्षेप में उल्लेख किया जा रहा है। शुरुआत नेशनल हाईवे अथारिटी से करते हैं। भारतमाला सड़क यही एजेंसी बना रही थी, भूअर्जन का मुआवजा इसी ने दिया। सूत्रों के मुताबिक तीन साल पहले जैसे ही मुआवजा बंटना शुरू हुआ, ठीक उस समय नेशनल हाईवे अफसरों को पता चला कि कुछ गड़बड़ है। बात अफसरों से होती हुई सीधे सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के पास पहुंची। बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम अरुण साव कुछ माह पहले प्रदेश के प्रोजेक्ट को लेकर मंत्री गडकरी से मिले, तो उन्होंने अभनपुर भारतमाला सड़क का जिक्र किया और बताया कि वहां जो भी हुआ, उनकी जानकारी में है। इसके बाद मौजूदा सरकार ने इसकी जानकारी लेनी शुरू की, तब यह मामला सामने आया।

सरकार अब तक इस मामले में एक अपर कलेक्टर, एक डिप्टी कलेक्टर, एक तहसीलदार और चार पटवारियों को सस्पेंड कर चुकी है। पटवारी टेक्निकल ग्राउंड पर स्टे लेकर नौकरी पर लौट चुके हैं, क्योंकि उनका सस्पेंशन एसडीओ ने नहीं किया था। अब बात यह आ रही है कि जितने अफसर सस्पेंड हुए हैं, उन पर भूअर्जन में गड़बड़ियों के आरोप हैं। उन्होंने ही जो दस्तावेज तैयार किए, उस आधार पर मुआवजा बांटा गया। लेकिन यह मुआवजा सस्पेंड हुए इन अफसरों के बाद पदस्थ दो एसडीओ के खाते में आया था। यह नियमानुसार है और उनके अभनपुर एसडीएम कार्यकाल में ही जिसे जितना मुआवजा अवार्ड हुआ, उसे पैसे बांटे गए। फिलहाल इन अफसरों के नाम इस मामले में नहीं हैं और यह भी स्पष्ट नहीं है कि उनकी क्या भूमिका थी।

भारतमाला स्कैम के दौरान रायपुर में तीन कलेक्टर पदस्थ रहे। लेकिन जानकार आईएएस अफसरों ने द स्तम्भ को बताया कि नेशनल हाईवे के भूअर्जन और मुआवजा वितरण में कलेक्टरों की कोई भूमिका नहीं रहती। नेशनल हाईवे का इस मामले में सारा करसपांडेंस और सारी प्रक्रिया एसडीएम के इर्द-गिर्द रहती है। राज्य के किसी प्रोजेक्ट में भूअर्जन हो, तो फाइलें कलेक्टर तक जाती हैं, लेकिन एनएचएआई के मामले में ऐसा नहीं होता। लिहाजा, कलेक्टरों की जानकारी के बिना मुआवजा सीधे संबंधित एसडीएम और एनएचआई के ज्वाइंट अकाउंट में गया और वहीं से बांटा गया। जहां तक कलेक्टरों की भूमिका का सवाल है, एक कलेक्टर के कार्यकाल में इस मामले की जांच करवाई गई। जांच रिपोर्ट रखी थी, जिसे दूसरे कलेक्टर ने शासन को भेजा।

एक और मामला ये है कि स्कैम आखिर कितने करोड़ का है। सूत्रों की मानें तो जिस मामले की जांच करवाई गई थी और रिपोर्ट में 45 करोड़ रुपए से ज्यादा के स्कैम की आशंका व्यक्त की गई, वह केवल एक पार्ट था। इसके दो पार्ट और हां। जलाशय की जमीन तथा अन्य उपयोग की जमीन का भी भूअर्जन हुआ है और मुआवजा बंट गया है। पता चला है कि मुआवजा बांटने के लिए रजिस्ट्री के दस्तावेजों में भी हेरफेर हुई है। रजिस्ट्री के दस्तावेजों में कुछ भी गड़बड़ी हुई, तो यह रजिस्ट्रार की आफिस के बिना संभव नहीं हैं। कुछ आनलाइन दस्तावेजों में भी करेक्शन की बात आ रही है। यह किसी बड़ी एजेंसी के लोगों की मदद से संभव नहीं है। इन सबको मिलाकर, स्कैम की रकम 200 करोड़ के आसपास होने की बात आ रही है।

छत्तीसगढ़ की एजेंसी ईओडब्लू सभी संबंधित दस्तावेज लेने के बाद इस मामले की जांच जल्द शुरू कर देगी। जांच में एजेंसी के सामने यह सब मुद्दे आ सकते हैं, क्योंकि आईजी अमरेश मिश्रा की टीम बहुत बड़े मामलों को हैंडल करने की वजह से टेकनिकल एनलिसिस से लेकर तमाम तरह के आधुनिक अन्वेषण सिस्टम की एक्सपर्ट हुई है। जानकारों के मुताबिक इस स्कैम का दायरा बेहद विस्तृत हो सकता है। अभी सतह पर काफी कुछ नजर आ रहा है, लेकिन सतह के नीचे भी कई तरह की पेचीदगियां हैं, जो जांच के साथ बाहर निकल सकती हैं।

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