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The Stambh Analysis: पंचायत चुनाव में भी ओबीसी आरक्षण 50% की सीलिंग पर ही… साय सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के पालन पर अडिग

छत्तीसगढ़ में पंचायती राज संस्थाओं यानी जिला पंचायत, नगर पंचायत और पंचायतों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का आरक्षण नगरीयत निकायों की तरह 50 प्रतिशत रखने का सिद्धांततः फैसला कर लिया है। रविवार को सीएम विष्णुदेव साय की कैबिनेट ने ओबीसी के आरक्षण को लेकर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया है। इसमें कहा गया है कि छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम, 1993 के अंतर्गत त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रतिनिधित्व एवं आरक्षण संबंधी प्रावधानों में संशोधन किए जाने हेतु विभिन्न धाराओं में संशोधन संबंधी जारी अध्यादेश की समयावधि को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया। इस बारे में द स्तम्भ ने आरक्षण के जानकार अफसरों से बात की है। उनका कहना है कि ओबीसी आरक्षण के मामले में यह फैसला भी वैसा ही है, जैसा नगरीय निकायों में ओबीसी आरक्षण को लेकर किया गया है। अर्थात, साय सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश का पालन करने के मामले में अडिग है, जिसमें कहा गया है कि किसी भी स्थिति में आरक्षण की लिमिट 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। कुछ जानकारों का कहना है कि पिछली सरकार ने ओबीसी आरक्षण का अनुपात निश्चित करने संबंधी विधेयक विधानसभा में पारित कर राज्यपाल के पास भेजा था। यह विधेयक अब तक लंबित है। सरकार इस वजह से भी नगरीय निकाय और पंचायती राज संस्थाओं समेत सभी मामलों में ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए एक राय है।

छत्तीसगढ़ में विपक्षी दल यानी कांग्रेस ओबीसी आरक्षण को कम करने का आदेश सरकार पर लगा रही है और आंदोलन भी हुए हैं। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पिछली सरकार ने कुछ राज्यों की तरह ओबीसी आरक्षण को लेकर जो नियम बना रखे हैं, उसी तरह छत्तीसगड़ में भी ओबीसी आरक्षण को 50 प्रतिशत की सीलिंग से बाहर निकालना चाहिए और फ्लैट आरक्षण देना चाहिए, जैसा पिछली सरकार के विधेयक में उल्लिखित है। पिछली सरकार इसी आधार पर ओबीसी को आरक्षण दे रही थी। जहां तक मौजूदा सरकार का सवाल है, वह सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश का पालन कर रही है, जिसमें शीर्ष कोर्ट की रूलिंग है कि आरक्षण हर हाल में अधिकतम 50 फीसदी ही रहना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी राज्य में एसटी आरक्षण 33 प्रतिशत और एससी आरक्षण 11 प्रतिशत है, तो यह 44 फीसदी होगा। ऐसे में ओबीसी आरक्षण 6 प्रतिशत ही दिया जा सकता है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग के अनुरूप आरक्षण 50 प्रतिशत तक ही होना चाहिए। सरकार ने नगरीय निकायों में भी इसी निर्देश पर आरक्षण किया है। इसी तरह, भर्तियों तथा अन्य जरूरी मुद्दों पर भी आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट की सीमा का ही पालन कर रही है। यही नियम पंचायती राज संस्थाओं पर भी लागू किया गया है। हम यहां आरक्षण के अधिकृत आंकड़ों अथवा राज्य की बात नहीं कर रहे हैं। सिर्फ यही बता रहे हैं कि साय कैबिनेट ने रविवार को जिन आध्यादेशों और संशोधनों की टाइम लिमिट बढ़ाई है, वह इसी ओर इशारा कर रही है कि पंचायती संस्थाओं में भी एसटी, एससी और ओबीसी को मिलाकर कुल आरक्षण सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार 50 प्रतिशत ही रखने की सहमति दे दी गई है।

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