भोरमदेव टाइगर रिजर्वः 38 गांवों के 17 हजार लोगों को हटाना होगा… इसीलिए पूर्व सीएम डा. रमन और पूर्व मंत्री अकबर ने 5-5 साल रुकवाए रखा

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण परिषद (एनटीसीए) ने कवर्धा में भोरमदेव टाइगर रिजर्व बनाने की अनुशंसा 2014 में ही कर दी थी। यह भी तय हो गया था कि टाइगर रिजर्व का क्या एरिया होगा। लेकिन यह मामला पिछले 10 साल से रुका हुआ था। द स्तम्भ के विश्लेषण में यह बात आई कि भोरमदेव टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में 38 गांव हैं, जो पूरी तरह जनजातीय बहुल हैं। यहां 17 हजार से ज्यादा लोगों का निवास है। यही बात है कि भोरमदेव टाइगर रिजर्व की बात जैसे ही फाइलों से बाहर आई, इन गांवों में लोगों को विस्थापित होने का डर सताने लगा। तत्कालीन सीएम डा. रमन सिंह इस बात को भांप गए। बताते हैं कि भोरमदेव टाइगर रिजर्व को उन्हीं की इच्छा से 2018 तक यानी पांच साल रोका गया। इसके बाद कांग्रेस सरकार बनी, तो तत्कालीन वनमंत्री मोहम्मद अकबर ने भी इसी आशंका को ध्यान में रखते हुए टाइगर रिजर्व की फाइल को पांच साल तक धूल चटवा दी, क्योंकि इससे हजारों लोगों को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ सकता था। टाइगर रिजर्व पर अभी वरिष्ठ भाजपा नेताओं की प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सूत्रों का दावा है कि डिप्टी सीएम विजय शर्मा और पंडरिया की भाजपा विधायक भावना बोहरा कभी भी टाइगर रिजर्व बनाने के समर्थन में दिखे नहीं है। ऐसे में एक बार फिर इस टाइगर रिजर्व के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं।
भोरमदेव टाइगर रिजर्व का पूरा कोर एरिया और बफर जोन का बड़ा हिस्सा कवर्धा विधानसभा में होगा। बफर जोन का कुछ हिस्सा पंडरिया विधानसभा क्षेत्र में भी आएगा। जिस समय भोरमदेव टाइगर रिजर्व की फाइल चली थी, तभी राजनैतिक खलबली मचने लगी थी। वजह ये थी कि तत्कालीन सीएम डा. रमन सिंह भले ही राजनांदगांव विधानसभा से लड़ते-जीतते आए हैं, लेकिन उनका निवास कवर्धा में ही है और अब भी उनका पूरा परिवार वहीं रहता है। टाइगर रिजर्व की फाइल चलने के बाद जंगल से जो प्रतिक्रिया आ रही थी, वह सीधे डा. रमन तक पहुंच रही थी। यही वजह थी कि 2014 के बाद से 2018 तक किसी ने भूल से भी टाइगर रिजर्व का नाम नहीं लिया। तब चर्चा थी कि क्षेत्र में राजनैतिक संतुलन बिगड़ सकता है, इसलिए डा. रमन ने टाइगर रिजर्व की फाइल रोके रखी। इस दौरान कवर्धा के कद्दावर कांग्रेस नेता मोहम्मद अकबर विधायक नहीं थे। लेकिन टाइगर रिजर्व को लेकर आने वाली प्रतिक्रिया के बाद उन्होंने विस्थापन का विरोध कर दिया था। जब 2018 में भूपेश बघेल की सरकार बनी और मोहम्मद अकबर वन मंत्री बने, तभी तय हो गया था कि जिस टाइगर रिजर्व को डा. रमन ने पांच साल रोका था, अकबर भी उसे रोककर ही रखेंगे। हुआ भी यही, दोनों को मिलाकर तकरीबन 10 साल तक टाइगर रिजर्व की फाइल सरकारी अलमारियों में ही बंद रही। दिलचस्प बात ये भी है कि इस बार भी टाइगर रिजर्व की पहल कवर्धा विधायक विजय शर्मा तथा पंडरिया विधायक भावना बोहरा की ओर से किए जाने की कोई सूचना नहीं है। बल्कि यह पहल रायपुर के दिग्गज भाजपा नेता तथा सांसद बृजमोहन अग्रवाल की तरफ से हुई है, जिस पर केंद्र सरकार ने मुहर लगाई है। छत्तीसगढ़ सरकार के लिए टाइगर रिजर्व की फाइल को ढूंढना-निकालना आसान है, क्योंकि सब कुछ रेडी ही है। लेकिन जानकारों का कहना है कि टाइगर रिजर्व बनेगा या नहीं, यह तो अब भी राजनैतिक हवा के रुख पर ही निर्भर रहने वाला है।