आम चुनाव

The Stambh Analysis: सीजी-एमपी में भाजपा का 1-1% वोटर शेयर बढ़ने से एक-एक सीट बढ़ी, देश में 0.7% घटा तो फिसलीं 63 सीटें

कांग्रेस का वोट शेयर सिर्फ 1.7 फीसदी बढ़ा लेकिन सीटें 52 से 99 हो गईं

चुनावी नतीजों पर कई तरह के एनलिसिस आते रहेंगे, उनमें से यह एक बड़ा विश्लेषण वोट शेयर को लेकर है। भारतीय जनता पार्टी को देश में 63 सीटों का नुकसान हुआ है। क्या आप जानते हैं कि भाजपा का वोट शेयर केवल 0.7 फीसदी घटने से पार्टी की इतनी सीटें कम हो गई हैं। वोट शेयर बढ़ने का थोड़ा फायदा केवल छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भाजपा को हुआ है। दोनों राज्यों में पार्टी का लगभग 1-1 फीसदी वोट शेयर बढ़ा है और दोनों ही राज्यों में इस बार सीटें भी एक-एक बढ़ गई हैं। दिल्ली जैसे कुछ ऐसे भी राज्य हैं, जहां भाजपा का वोट शेयर घटा लेकिन सीटें कम नहीं हुईं। लेकिन वहां बड़ा अंतर यह दिखा है कि 2019 में सभी सीटें बड़े मार्जिन से भाजपा ने जीती थीं, इस बार ज्यादातर सीटों पर लीड बहुत कम हो गई, यानी कई प्रत्याशी कड़ा मुकाबला झेलकर ही जीत पाए हैं। इसके विपरीत, 2019 के चुनाव में देश में कांग्रेस का वोट शेयर 19.5 फीसदी था, जो इस बार लगभग 1.7 प्रतिशत बढ़कर 21.2 फीसदी पर पहुंचा। लेकिन वोट शेयर की इतनी कम ग्रोथ में भी करिश्मा हो गया तथा सीटें 52 से बढ़कर 99 हो गईं। इसकी वजह यह थी कि पिछले चुनाव में कांग्रेस के बहुत सारे उम्मीदवार कड़े मुकाबले में कम वोटों से हारे थे। वोट शेयर में थोड़ा इजाफा होते ही कम मार्जिन वाली सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज कर ली।

भाजपा के वोट शेयर में कमी-वृद्धि को ऐसे समझें

जहां तक भाजपा का सवाल है, 2019 में पार्टी का वोट शेयर 37.09 प्रतिशत था और अकेले भाजपा ने देश में 303 सीटें हासिल करके पूर्ण बहुमत लाया था। 2024 में इस वोट शेयर में महज 0.7 फीसदी की कमी रही और यह9 36.6 प्रतिशत पर पहुंचा। लेकिन वोट शेयर में मामूली कमी के बावजूद 63 सीटें का ऐसा नुकसान हुआ कि भाजपा अकेले बहुमत से काफी पीछे चली गई। इसकी वजह भी यही है कि पिछले चुनाव में जिन सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी कम वोटों से जीते थे, वोट शेयर में थोड़ी कमी से वे जीत से हार की तरफ बढ़ गए।

वोट शेयर में मामूली अंतर से बदलते हैं नतीजे

वोट शेयर में मामूली गिरावट से सीटें इतनी कम कैसे हो जाती हैं, यह भी समझने की जरूरत है। दरअसल राष्ट्रीय वोट शेयर राज्यों के वोट शेयर का एग्रीगेशन है। अब भाजपा का उदाहरण लें। जिन राज्यों में उसका वोट शेयर बढ़ा, दरअसल वह इस तरह कम आधार से शुरू हुआ कि वोट शेयर बढ़ा, तब भी बढ़े हुए वोट पार्टी के उम्मीदवारों को जीत नहीं दिला पाए। इसकी विपरीत, जहां प्रतिस्पर्धा ज्यादा थी, वहां वोट शेयर में थोड़ी सी कमी से पार्टी को कई सीटों से हाथ धोना पड़ा। यह सिर्फ भाजपा ही नहीं, हर पार्टी पर लागू हुआ। कांग्रेस और सपा को वोट शेयर में मामूली इजाफे के बाद भी इसी वजह से बहुत अधिक सीटों का फायदा हो गया।

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