बस्तर में हेलिकाप्टर से पोलिंग पार्टियां खौफनाक जंगलों में उतरीं…जहां से सरकार मीलों दूर

- नारायणपुर की दोनों तस्वीरों में जो लोग नजर आ रहे हैं, ये सिर्फ चुनावी अमला नहीं है। जब हम शान से कह रहे होंगे कि लोकतंत्र के सबसे बडे़ उत्सव में सहभागी हैं, तब ये लोग जंगल-पहाड़ों में बिना किसी नेटवर्क के दो दिन इस तरह गुजार रहे होंगे कि हर आहट पर खौफ की लहरें आएंगी-जाएंगी। छत्तीसगढ़ पुलिस, सीआरपीएफ, बीएसएफ और डीआरजी फोर्स के साथ जंगलों में तैनात प्रशासनिक अफसर-कर्मचारियों समेत लोकतंत्र के इन सभी वीर योद्धाओं को द स्तंभ का नमन…
बस्तर में चुनावी शोर बुधवार को शाम 5 बजे थम गया। वहां आज दिनभर सभाएं-शो नहीं होंगे, सिर्फ घरों में जाकर प्रचार कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ में सिर्फ बस्तर ही ऐसी सीट है, जहां पहले चरण में 19 अप्रैल, गुरुवार को मतदान होगा। बस्तर संसदीय क्षेत्र इसलिए स्पेशल है, क्योंकि यहां लगभग 400 मतदान दल सोमवार से ही हेलिकाप्टर से अपने केंद्रों के लिए न सिर्फ उड़ान भरना शुरू कर चुके थे, बल्कि सौ से ज्यादा दल तो जंगल-पहाड़ों से लगभग पैदल गुजरते हुए मंगलवार को, यानी दो दिन पहले ही अपने केंद्रों में पहुंच भी चुके थे। ये मतदान दल ऐसे-ऐसे बीहड़ इलाकों में पहुंचे हैं, जहां सरकारी अमला भी कभी-कभार ही जाता है, वह भी भारी सिक्योरिटी में। बिजली नहीं रहती, जनरेटर या बैटरियों से भी काम चलेगा। एक बात और, जो दल गए उनका पूरी दुनिया से संपर्क लगभग इसलिए भी खत्म क्योंकि मोबाइल-इंटरनेट सब वापसी तक ठप।
बस्तर के घनघोर जंगल तथा धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में जितने मतदान केंद्र पक्के भवनों में हैं, जंगल में उतने ही झोपड़ीनुमा या कच्चे मकानों में हैं। सरकारी कर्मचारियों को ईवीएम और मतदान सामग्री लेकर भेजने की प्रक्रिया भी दिलचस्प है। इस लोकसभा क्षेत्र के नारायणपुर, सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा में सब मिलाकर 400 से ज्यादा मतदान दल सोमवार को ही अपने-अपने बेस से टेकआफ हो चुके हैं। नारायणपुर जिला निर्वाचन अधिकारी बिपिन मांझी और बीबी पंचभाई ने बताया कि उनके सभी दल अपने-अपने केंद्रों में पहुंच गए हैं। कस्बों में भी फोर्स बैठ गई है। सभी की वापसी 19 अप्रैल को ही देर शाम तक हो जाएगी, क्योंकि नारायणपुर में हेलिकाप्टर की नाइट लैंडिंग के भी इंतजाम हैं।
हकीकत में इतना आसान नहीं धुर नक्सल जंगलों में आना-जाना
बस्तर में मतदान दलों को हेलिकाप्टर से बीहड़ इलाकों में उतारना, फिर वहां से वापस लेकर उड़ना इतना आसान नहीं है। एक बड़ा खतरा यह भी है कि हेलिकाप्टर कुछ नीचे उड़ते हैं, इसलिए कई बार नक्सली इन पर गोलियां भी चला देते हैं। द स्तंभ ने कई अफसरों और मतदान दलों से बात की। पता यह चला कि इन चार जिलों के अलावा बस्तर और कोंडागांव जिलों में भी उन पार्टियों को मतदान सामग्री सोमवार को ही दे दी गई थी, जिन्हें हेलिकाप्टर से जंगल-पहाड़ों पर उतारना है। सेना और बीएसएफ के विशालकाय हेलिकाप्टरों से ये दल कल दोपहर से उड़ान भर रहे हैं। ये हेलिकाप्टर इन दलों को जंगलों में ऐसे कैंप में उतारकर लौट जाते हैं, जहां हैलिपेड हैं। कुछ केंद्र इन कैंपों आधा-एक किमी हैं तो कुछ तीन। लेकिन ये तीन किमी कम भारी नहीं हैं, क्योंकि इसी में पहाड़ भी हैं और नदी-नाले भी पार करने पड़ते हैं। जहां ये मतदान दल जाते हैं, वहां जंगल ऐसा घना है कि 50 मीटर से आगे कुछ नजर नहीं आता। इन जंगलों में माओवादियों का डामिनेंस रहा है। माओवादी मतदान का विरोध करते हैं, इसलिए ऐसे इलाकों में जाने वाली पोलिंग पार्टियां कड़ी सुरक्षा के बावजूद अगले दो-तीन दिन थोड़ी दहशत में ही गुजारेंगी। तब तक, जब तक कि वे ईवीएम लेकर कैंप न पहुंचें फिर वहां से हेलिकाप्टर से जिला मुख्यालय में लैंड न कर जाएं।