The Stambh Insight: छत्तीसगढ़ में 28 करोड़ वर्ष पुराने समुद्री फासिल्स 80 साल से सरकारी फाइलों में भी बने जीवाश्म… यहीं मरीन फासिल्स पार्क बनवाएंगे सीएम साय

यह सही है कि लाखों-करोड़ साल पुराने जंतुओं को प्रकृति जीवाश्म बनाकर सहेजे रखती है और यह भी सही होने लगा है कि सरकारें भी जीवाश्म बनाने में कम माहिर नहीं है। हम बात कर रहे हैं मनेंद्रगढ़ में हसदेव के किनारे मिले समुद्र के 28 करोड़ साल पुराने जीवाश्मों की, जिसे 1954 में ढूंढ निकाला गया, 1982 में जिलोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया ने इसे नेशनल जियोलाजिकल मान्यूमेंट्स घोषित कर दिया, 2015 में देश के प्रतिष्ठित बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ने यहां के फासिल्स की डेटिंग कर इसे 28 करोड़ साल पुराने जीवाश्व बता दिया। द स्तम्भ ने इस जीवाश्म साइट की डेटा माइनिंग की तो खुलासा हुआ कि पिछले 80 साल में कई सरकारों ने इसे छत्तीसगढ़ का गौरव घोषित किया, इसे मरीन फासिल्स साइट के तौर पर अंतरराष्ट्रीय धरोहर की तरह डेवलप करने के प्लान लाए गए,स बायोडायवर्सिटी विशेषज्ञों से लेकर जियोलाजिस्ट्स के कई दौरे हो चुके, उद्घाटन के पत्थर लगे लेकिन पूरी साइट खोज के बाद से यानी पिछले 8 दशक से हसदेव नदी के किनारे जीवाश्म बनती हुई पड़ी है। अब सीएम विष्णुदेव साय की सरकार ने इसे मरीन फॉसिल्स पार्क के रूप में डेवलप करने की तैयारी शुरू की है। खुद सीएम साय ने वर्षों से बर्बाद हो रही इस मरीज फासिल्स साइट को डेवलप करने में दिलचस्पी दिखाई है क्योंकि सीएम का मानना है कि छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़ में करोड़ों साल पहले समुद्र था और उसके जीव हसदेव नदी में फासिल्स बन गए, यह एक बड़ी खोज और राज्य के लिए गौरव का विषय है। इसे न सिर्फ पर्यटन स्थल बल्कि प्रमुख वैज्ञानिक साइट के रूप में विकसित करने के देश-दुनिया के वैज्ञानिक इस धरोहर की ओर आकर्षित होंगे।
मनेंद्रगढ़ की इस फासिल्स साइट के बारे में
पुरातत्व विभाग के नोडल अधिकारी डा विनय कुमार पांडेय के अनुसार हसदेव एशिया की सबसे बड़ी जीवाश्म साइट है। इसकी खोज 1954 में डॉ. एसके घोष ने की। फिर ईएसआई व लखनऊ के बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ने इसपर लगातार सर्वे किया। जो नतीजे आए हैं, उनके मुताकि वर्तमान हसदेव नदी की जगह 28 करोड़ वर्ष पूर्व एक ग्लेशियर था। यह बाद में श्टाथिसश नाम की पतली पट्टी के रूप में समुद्र में समा गया। यहां के समुद्री जीव-जंतु मनेन्द्रगढ़ की वर्तमान हसदेव नदी में प्रवेश कर गए। वे धीरे-धीरे विलुप्त हो गए लेकिन जीवाश्म आज भी देखे जा सकते हैं। यह प्रमाण मिलते हैं कि करोड़ों साल पहले इस क्षेत्र में समुद्र था, जो बाद में प्राकृतिक परिवर्तन के कारण हटा और इन जीवों के अवशेष पत्थरों में दबकर जीवाश्म के रूप में संरक्षित हो गए।यह जीवाश्म क्षेत्र वास्तव में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और वैज्ञानिक धरोहर है, जो पृथ्वी के प्राचीन इतिहास को समझने का महत्वपूर्ण स्रोत है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) द्वारा 1982 से इस क्षेत्र को नेशनल जियोलॉजिकल मोनुमेंट्स के रूप में संरक्षित किया गया है, जो इसके महत्व को दर्शाता है।
मरीन फासिल्स पार्क खुलने का क्या होगा असर
मरीन फॉसिल्स पार्क के रूप में विकसित होने के बाद यह क्षेत्र एक बायोडायवर्सिटी हेरिटेज साइट के रूप में पर्यटकों और वैज्ञानिकों के लिए खुल जाएगा। यहां आने वाले सैलानी करोड़ों साल पुराने जीवों की उत्पत्ति और उनके विकास की कहानी को देख और समझ सकेंगे। छत्तीसगढ़ सरकार इस परियोजना को विशेष महत्व दे रही है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया कोलकाता और बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट लखनऊ की टीमों ने इस क्षेत्र का अध्ययन कर इसकी संभावनाओं का जायजा लिया है।