सरकार नक्सलियों से युद्धविराम जैसी शर्तों के पक्ष में नहीं… गृहमंत्री शाह का स्टैंड कायम- हथियार छोड़कर सरेंडर करना होगा… इधर, नक्सलियों ने एक माह का युद्धविराम मांगा

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह हाल में छत्तीसगढ़ आए थे, तब उन्होंने कहा था कि नक्सलियों के सामने हथियार डालने और मोदी सरकार की सरेंडर पालिसी के तहत मुख्यधारा में आने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। पिछले दो दिनों में बस्तर के अलग-अलग जिलों में दो दर्जन से ज्यादा नक्सलियों के सरेंडर के बाद गृहमंत्री शाह ने अपना स्टैंड दोहराया है कि नक्सलियों को हथियार छोड़कर सरेंडर करना होगा। उन्होंने अपील की कि यथाशीघ्र हथियार डालें और मुख्यधारा में शामिल हों। इस तरह, यह साफ हो गया है कि केंद्र और छत्तीसगढ़ की साय सरकार सरेंडर करने या फिर सुरक्षाबलों का सामना करने के अलावा नक्सलियों के सामने कोई और विकल्प पर बात करने के पक्ष में नहीं है। इधर, सुरक्षाबलों की ताबड़तोड़ कार्रवाइयों की वजह से नक्सलियों में खलबली मच गई है। इसी का नतीजा है कि एक माह के भीतर माओवादियों की ओर से पहले शांति वार्ता, और अब एक माह के युद्धविराम की मांग आ गई है।
बता दें कि शुक्रवार को बीजापुर पुलिस के सामने 22 नक्सलियों ने हथियारों और विस्फोटकों के साथ गिरफ्तार किया है। कल शाम को ही नारायणपुर में 5 नक्सलियों ने सरेंडर किया है। केंद्र सरकार इस पर पूरी तरह नजर बनाए हुए है। इसी दौरान नक्सलियों की उत्तर-पश्चिम सब जोनल कमेटी के कमांडर की ओर से जारी की गई एक चिट्ठी भी वायरल हुई है। इस चिट्ठी में रूपेश नाम के नक्सली कमांडर की ओर से एक माह के युद्धविराम की अपील की गई है, ताकि शांति वार्ता के प्रोसेस को आगे बढ़ाया जा सके। लेकिन, माना जा रहा है कि सरकारें अब नक्सलियों से किसी तरह की शांति वार्ता के मूड में नहीं हैं। केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ में मार्च 2026 तक नक्सलियों के खात्मे का लक्ष्य तय किया है। इस आधार पर फोर्स ने पिछले कुछ माह में जंगलों में नक्सलियों को बुरी तरह घेर रखा है। अब तक लगभग दो सौ नक्सली मारे गए हैं। सरकारें ही नहीं, सुरक्षाबलों का भी मानना है कि लड़ाई छिड़ने से पहले शांति वार्ता की पहल होती, तो अलग बात थी। अब फोर्स नक्सलियों पर बुरी तरह हावी है, ऐसे में युद्धविराम की अपील की तरफ ध्यान देना बेमानी है। सूत्रों के मुताबिक छत्तीसगढ़ सरकार युद्धविराम की पेशकश के पक्ष में नहीं है। इसीलिए विकल्प दिया गया है कि अगर बस्तर में नक्सली शांति चाहते हैं, तो उन्हें हथियार डालकर सरेंडर करते हुए मुख्यधारा में शामिल होना होगा।