अफसर-कर्मी वोट देना सिखाते हैं, वे ही ठीक से नहीं जानते…कांकेर में 1333 डाक वोट रिजेक्ट
छत्तीसगढ़ की कांकेर लोकसभा सीट के नतीजे चौंकाने वाले हैं। कांग्रेस के बिरेश ठाकुर भाजपा के भोजराज नाग से करीब 19 सौ वोटों से हारे हैं। इनमें भी बड़ी भूमिका उन 1333 डाक मतपत्रों की है, जिन्हें कई गंभीर गलतियों के कारण रिजेक्ट किया गया। सवाल यह उठ रहा है कि जो सरकारी अफसर-कर्मचारी आम लोगों को एक महीने तक वोट देना सिखाते हैं, डाक मतपत्रों में वही इतनी गलती कैसे कर सकते हैं कि वोट ही रिजेक्ट हो जाए।
कांकेर में लगभग साढ़े 6 हजार डाक वोट पड़े थे। इनमें से 1333 रिजेक्ट घोषित किए गए, यानी लगभग 20 प्रतिशत। ये रिजेक्शन रेट सरकारी कर्मचारियों के वोटों का है, जिन्हें आमतौर से पढ़ा लिखा मान सकते हैं। कांकेर में ऐसे लाखों वोटर होंगे, जिन्होंने या तो जीवन में कभी स्कूल की शक्ल नहीं देखी, या पांचवीं से आगे नहीं गए। उनके वोटों का रिजेक्शन नहीं के बराबर है। यह आश्चर्य पैदा करता है। द स्तंभ की पड़ताल में यह बात सामने आई कि जो डाकमत्र रिजेक्ट किए गए, उनमें सर्वाधिक संख्या ऐसे कर्मचारियों की है, जिन्होंने मतपत्र को अटेस्ट नहीं करवाया। जबकि सभी जानते हैं कि डाक मतपत्र में यह सबसे जरूरी है। खैर, इस बात को शिक्षित होने पर प्रश्नचिन्ह लगाने से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
लगातार दूसरी बार सबसे छोटी हार बिरेश की
इस सवाल के अलावा कांकेर तथा पूरे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस प्रत्याशी बिरेश ठाकुर की चर्चा भी है। यह अकेला प्रत्याशी है, जिन्हें लगातार दो चुनावों में बेहद कम मार्जिन से हार का सामना करना पड़ा है। 2019 के चुनाव में कांग्रेस के बिरेश करीब 6 हजार वोटों से हारे थे, इस बार तो 19 सौ वोटों से ही। हालांकि यह अंतर रिकार्ड नहीं है। आपको याद होगा, पूर्व केंद्रीय मंत्री शहीद वीसी शुक्ल 1991 में भी लगभग 989 वोटों से रायपुर लोकसभा से चुनाव जीते थे। हालांकि इस नतीजे को लेकर लगभग साढ़े 4 साल इलेक्शन केस चला। हालांकि उनकी जीत बरकरार घोषित कर दी गई थी।
बिरेश की हार में सबसे बड़ी गलती पार्टी की
कांकेर के जागरुक नेता और मीडियाकर्मियों की मानें, तो बिरेश की छोटी सी इस हार में बड़ी गलती संभवतः कांग्रेस की ही है। भाजपा ने भोजराज नाग को निर्वाचन प्रक्रिया शुरू होने से एक माह पहले प्रत्याशी बना दिया था। जबकि नामांकन दाखिले तक बिरेश टिकट के लिए रायपुर या दिल्ली के ही चक्कर काटते रहे। अंतिम समय में टिकट मिला, पर इतना समय नहीं बचा था कि वे हर गांवों तक पहुंच पाते। कांकेर लोकसभा चार जिलों में है, गांवों में वोटर भले ही कम है, लेकिन दूरी बहुत ज्यादा है और रास्ते भी दुरूह हैं।