Innovation: कोविड बायोमार्कर किट बना दी अंबेडकर अस्पताल के वैज्ञानिकों ने… ये बताएगी- बीमारी का असर कितना
मेडिकल कालेज डीन डा. नागरिया और अस्पताल अधीक्षक डा. नेताम ने दी बधाई
प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अम्बेडकर अस्पताल की मल्टी-डिसीप्लिनरी रिसर्च यूनिट (एमआरयू) के वैज्ञानिकों ने बड़ा नवाचार किया है। उन्होंने एक खास बायोमार्कर किट डेवलप कर ली है। यह किट कोरोना होते ही यह पता लगा सकती है कि उस मरीज पर बीमारी का कितना असर हो सकता है। शुरू में ही अनुमान लग जाएगा कि मरीज को खतरा कम या ज्यादा होगा, तो उससे इलाज में आसानी हो सकती है। बायोमार्कर किट को डेवप करने के लिए हुए इस रिसर्च के नतीजे हाल ही में साइंटिफिक रिपोर्ट्स (https://www.nature.com/articles/s41598-024-70161-8) में प्रकाशित हुए हैं। प्रतिष्ठित नेचर प्रकाशन समूह का यह जर्नल दुनिया का 5वां सबसे अधिक संदर्भित किया जाने वाला रिसर्च जर्नल है।
एमआरयू दरअसल जेएनएम मेडिकल कालेज रायपुर, पंस्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, डीएचआर, भारत सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार की संयुक्त यूनिट है। इसे पीएम मोदी के मेक इन इंडिया अभियान को बढ़ावा देने वाला रिसर्च माना जा रहा है। जेएनएम की डीन डॉ. तृप्ति नागरिया एवं अम्बेडकर अस्पताल अधीक्षक डॉ. एसबीएस नेताम ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए इस रिसर्च पर एमआरयू के वैज्ञानिकों और पूरी टीम को बधाई दी है। बायोमार्कर किट के लिए जेएनएम मेडिकल कालेज ने भारतीय तथा अंतरराष्ट्रीय पेटेंट का आवेदन भी दिया है।
कोविड प्रोग्नोस्टिक बायोमार्कर किट को विकसित करने वाले प्रमुख वैज्ञानिक एवं टीम लीडर डॉ. जगन्नाथ पाल हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी के शुरू में एंटी-वायरस दवाओं का बहुतायत मात्रा में प्रयोग हुआ। जिससे दवाओं के साथ-साथ रेमडेसिवीर जैसे इंजेक्शनों का भी भयंकर संकट आ गया। वजह ये थी कि शुरू में यह पता नहीं चलता था कि कोविड के किन रोगियों का इलाज सामान्य दवाइयों से होगा या किन्हें एडवांस ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ेगी। क्योंकि तब कोई भी ऐसा टेस्ट/जांच उपलब्ध नहीं थी, जिससे शुरू में ही बीमारी की गंभीरता का पता चलता। इसीलिए एमआरयू रिसर्च टीम ने इस दिशा में काम करना शुरू किया। अंततः बायोमार्कर किट विकसित करने में सफलता हासिल कर ली, जिससे बीमारी की गंभीरता का अनुमान पहले चरण में ही लग जाएगा। इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने क्यू पीसीआर (Quantitative PCR (qPCR)) आधारित टेस्ट के जरिए सीवियरिटी स्कोर (severity score) विकसित किया। इसकी संवेदनशीलता 91 प्रतिशत (Sensitivity 91%) और विशेषता 94 प्रतिशत (Specificity 94%) है।
रायपुर से यूएसए तक के वैज्ञानिक हुए शामिल
रिसर्च में रायपुर के डॉ. अरविंद नेरल (एचओडी-पैथोलॉजी), डॉ. निकिता शेरवानी (एचओडी-माइक्रोबायोलाजी), डॉ. विजयलक्ष्मी जैन, अपर्णा साहू, आरती कुशवाहा, फुलसाय पैकरा, मालती साहू, एनेस्थीसिया और पेन मैनेजमेंट विभाग से डॉ. हीरामणि लोधी, क्रिटिकल केयर से डॉ. ओमप्रकाश सुंदरानी, रेस्पिरेटरी चिकित्सा से डॉ. रवींद्र कुमार पंडा, डॉ. विनित जैन और हार्वर्ड (डाना फार्बर) कैंसर संस्थान, यूएसए से डॉ. मसूद ए शम्मास तथा एमआरयू वैज्ञानिक डॉ. योगिता राजपूत शामिल हैं। इस रिसर्च को सुविधाएं उपलब्ध करवाने में डॉ. विष्णु दत्त (पूर्व डीन और डीएमई), डॉ. तृप्ति नागरिया (डीन, जे एन एम मेडिकल कॉलेज), डॉ. विवेक चौधरी (डायरेक्टरग-कैंसर एवं पूर्व नोडल-एमआरयू) तथा डॉ. निधि पांडे (वर्तमान नोडल-एमआरयू) के साथ डॉ. सुमित त्रिपाठी (एचओडी-फिजियोलॉजी विभाग) के साथ-साथ पूर्व डीएमई डॉ. एस. एल. आदिले ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के पूर्व महानिदेशक (डीजी) डॉ. विश्व मोहन कटोच और आईसीएमआर (मुख्यालय) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आशू ग्रोवर ने इस परियोजना की समीक्षा की है।