सरकारी अफसर-कर्मियों को एक दिन की छुट्टी मिल जाए तो पूरे 5 दिन का Holiday Package…जानिए कैसे
जिस तरह छत्तीसगढ़ की धरती खनिज और वन-संपदा से समृद्ध है, छत्तीसगढ़ सरकार छुट्टियों के मामले में उससे भी ज्यादा समृद्ध हो गई है। रविवार के बाद जब शनिवार की भी छुट्टी घोषित हुई, तब लगता था कि सरकारी अमले को 5 दिन कस के काम करना होगा, बीच की छुट्टियां भी कम होंगी। लेकिन ऐसा न हुआ न होगा। दो दिन के वीकएंड के कारण साल में कई बार ऐसे मौके आते हैं, जब सरकारी अमला एक दिन की छुट्टी ले ले, तो चार-पांच दिन का हालीडे पैकेज मिल जाता है। इस हफ्ते भी कुछ ऐसा ही है। गुरुवार यानी 15 अगस्त को आजादी का उत्सव है। अगर सरकारी अमले को 16 अगस्त को छुट्टी मिल गई, तो फिर 17 को शनिवार और 18 को रविवार है। बात यहीं खत्म नहीं हुई, क्योंकि 19 तारीख को रक्षाबंधन है। यानी जो येन-केन-प्रकारेण 16 अगस्त की छुट्टी लेने में सफल हो जाते हैं, तो उनके लिए 14 अगस्त की रात से छुट्टी का माहौल शुरू हो जाएगा, जो कि मंगलवार, 20 अगस्त को सुबह साढ़े 10 बजे तक चलेगा।
यकीन करिए, मंत्रालय से लेकर जिला कार्यालयों तक, हर अधिकारी-कर्मचारी को पांच दिन के इस हालीडे पैकेज की जानकारी है। ज्यादातर जुगाड़ में लगे हैं कि किसी न किसी बहाने 16 तारीख की छुट्टी मिल जाए, ताकि वे 15 से 18 तक घूम आएं और 19 को रक्षाबंधन भी मना लें। ऐसे बहुत सारे अफसर-कर्मचारी हैं, जिन्हें बाहर नहीं जाना है। वे दबी जुबान में कहते हैं- 16 को आफिस आए, तो भी छुट्टी टाइप ही रहेगा, क्योंकि सबको पता है कि आगे-पीछे छुट्टियां ही हैं। जिन्हें अपना जरूरी काम करवाना है, वो 14 अगस्त तक कर लेंगे। बाकी 20 अगस्त के लिए पोस्टपोन ही करेंगे।
बैंक और कार्पोरेट में ऐसा कोई पैकेज नहीं
सरकारी अमले की तुलना में बैंकों के पास छुट्टियां नहीं हैं, कारपोरेट में तो छुट्टियां दवाई की तरह मिलती हैं। बैंक शुक्रवार को फुल डे और शनिवार को हाफ डे रहेंगे। कारपोरेट जगत में 15 अगस्त की छुट्टी रहेगी, लेकिन डिजिटल-इलेक्ट्रानिक वाले तो वह भी अघोषित रूप से बंद ही करते जा रहे हैं। इस तर्क के साथ कि जब रेडियो-टीवी चल रहे हैं, ट्रेनें चल रही हैं, तो फिर अखबार-वेबसाइट क्यों नहीं चल सकतीं। देश के 90 फीसदी युवा कारपोरेट में काम करते हैं क्योंकि सरकारी नौकरी नहीं है। कारपोरेट उनसे इसी तर्क के साथ छुट्टियों की तथाकथित बुरी आदत छुड़वा रहा है। लेकिन सरकारी अमले को ऐसे तर्क देने की हिम्मत किसी में नहीं है, क्योंकि किसी दबंग अफसर या नेता ने ऐसा सोच भी लिया, तो उसकी विषाक्त मानसिकता के विरोध में हड़ताल हो जाएगी।