दावेदार ध्यान दें… महापौर-पार्षद चुनाव इस साल मुश्किल क्योंकि ओबीसी आरक्षण फंसा है… चुनाव इसके फाइनल होने के बाद

सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस ही नहीं, बल्कि राजधानी समेत प्रदेशभर के वार्डों में महापौर और पार्षद के हजारों की तादाद में उम्मीदवारों की सक्रियता बढ़ गई है, क्योंकि सभी को नवंबर-दिसंबर में चुनाव हो जाने की उम्मीद है। लेकिन सभी प्रत्याशियों को यह जान लेना चाहिए कि यह मामला आरक्षण में फंस गया है। जब तक वार्डों और निगम-पालिका-पंचायतों तथा वार्डों का आरक्षण नहीं होता, तब तक चुनाव संभव नहीं है। आरक्षण अभी नहीं किया जा सकता, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के बाद फैसला दे दिया है, जिसकी व्याख्या इस तरह की जा रही है कि जब तक ओबीसी के वास्तविक आंकड़े नहीं आते, तब तक ओबीसी 27 प्रतिशत के हिसाब से आरक्षण नहीं दिया जा सकता। अगर ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने के बाद कुल आरक्षण 50 प्रतिशत होता है, तब भी ऐसा नहीं कर सकते। अर्थात जब तक ओबीसी के वास्तविक आंकड़े नहीं आते, तब तक आरक्षण नही हो सकता है। आरक्षण नहीं होगा, तो नगरीय चुनाव भी संभव नहीं है।
ओबीसी आरक्षण होगा वास्तविक डेटा पर
जानकार अफसरों का कहना है कि प्रदेश में अब तक ओबीसी का फिक्स आंकड़ा नहीं है। पिछली सरकार में ओबीसी के लिए क्वांटिफाइएबल डेटा इकट्ठा किया गया था, लेकिन रिपोर्ट सबमिट नहीं हुई। सरकार के पास जब तक ओबीसी के पुख्ता आंकड़े नहीं आते, तब तक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप फिक्स 27 प्रतिशत पर आरक्षण नहीं कर सकते, जैसा अब तक किया जा रहा था। इसीलिए प्रदेश सरकार ने कुछ दिन पहले आनन-फानन में ओबीसी आयोग गठित किया था। आयोग ने अपनी प्रक्रिया शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि ओबीसी की वास्तविक संख्या का पता चलने में ही कम से कम तीन-चार माह लग सकते हैं। अभी सितंबर चल रहा है, अगर नवंबर-दिसंबर में ओबीसी का आरक्षण तय कर लिया जाता है, तब भी चुनाव होने में दो-तीन माह लगेंगे। क्योंकि पहले नगरीय निकायों और वार्डों का कलेक्टर आरक्षण करेंगे। इसके बाद ही चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
प्रदेशभर में शुरू हो गई दावेदारों की कवायद
छत्तीसगढ़ में सरकारी एजेंसियां इस तरह का माहौल तैयार कर रही हैं कि महापौर-पार्षदों की चुनाव की घोषणा अब-तब में कर ली जाएगी। दो दिन पहले नगर निगम में अफसरों की बैठक हुई थी, जिसमें निर्देश दिए गए थे कि पेंडिंग काम 15 दिन में पूर्ण कर लिए जाएं। इसके बाद तेजी से चर्चा फैली कि 15-20 दिन में नगरीय चुनाव की आचार संहिता लग सकती है। इस आधार पर पूरे प्रदेश के वार्डों में दावेदारों की गतिविधियां तेज हो गई हैं। भाजपा और कांग्रेस के दफ्तरों तथा नेताओं के बंगलों में भी दावेदारों का आना-जाना बढ़ गया है। जबकि जानकार अफसरों का मानना है कि आरक्षण का पेंच ऐसा है कि अगले दो-तीन माह तक ये सुलझ नहीं पाएगा। आरक्षण के बाद ही चुनाव होना है, इसलिए नगरीय चुनाव इस साल हो जाए, यह मुश्किल ही है।