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आधी सदी पहले पीपरछेड़ी बांध का काम पर्यावरण क्लीयरेंस में रुक गया… अब जाकर सीएम साय ने दिलवाई मंजूरी, इससे 5 हजार किसानों को पानी

गरियाबंद जिले के घुनघुट्टी नाले पर पीपरछेड़ी बांध बनाने का प्रोजेक्ट तत्कालीन सरकार ने मंजूर किया था, ताकि आसपास के ग्रामीणों को सिंचाई के लिए पानी मिल सके। मंजूरी 1977 यानी 48 साल (लगभग आधी सदी) पहले हुई, कुछ माह में निर्माण भी शुरू हो गया। काम कुछ आगे बढ़ा था कि 1980 में वन अधिनियम लागू हुआ। इस वजह से बांध बनाने के लिए वन एवं पर्यावरणीय स्वीकृति जरूरी हो गई। पर्यावरण स्वीकृति की कोशिश उस समय की गई, लेकिन एक-दो साल में सब पीपरछेड़ी बांध को भूलने लगे। जितना काम हुआ था, 1980 के बाद से अब तक वैसा ही है। छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णुदेव साय ने पूरी पड़ताल करवाई कि आखिरकार 10 से अधिक गांवों के 5,000 किसानों को सिंचाई का पानी देने वाले इस बांध का काम क्यों रुका। पता चला कि मामला पर्यावरण क्लीयरेंस में अटका है। इसके बाद सीएम साय ने केंद्र की पीएम मोदी सरकार से इसकी पर्यावरण स्वीकृति करवा दी। शुक्रवार को सीएम ने सुशासन तिहार समाधान शिविर में पीपरछेड़ी बांध का काम शुरू करने की घोषणा की तो काफी देर तक तालियां गूंजती रहीं, क्योंकि यह इलाके की बहुप्रतीक्षित मांग थी।

गरियाबंद जिले के सुदूर वनांचल मड़ेली में आज पीपरछेड़ी बांध की घोषणा किसी ऐतिहासिक क्षण से कम नहीं थी। यह घोषणा न केवल एक अधूरे वादे की पूर्णता है, बल्कि क्षेत्र के हजारों किसानों के सपनों की भी पुनर्स्थापना है। सीएम साय ने कहा कि यह सिर्फ एक परियोजना नहीं, बल्कि किसानों के संघर्ष, प्रतीक्षा और उम्मीद की जीत है। यह सुशासन तिहार का असली अर्थ है – लोगों के जीवन में वास्तविक बदलाव लाना। इस निर्णय से न केवल क्षेत्र के किसानों को स्थायी सिंचाई सुविधा मिलेगी, बल्कि फसल उत्पादन और किसानों की आर्थिक स्थिति में भी व्यापक सुधार होगा, जिससे क्षेत्र में समग्र विकास की नई धारा बहेगी।

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