छत्तीसगढ़ में 40 लाख लोगों ने कोवैक्सीन टीके लगवाए थे…उनके लिए यह बड़ी खबर

ब्रिटेन के प्रतिष्ठित न्यूजपेपर द डेली टेलीग्राफ के हाल में किए गए खुलासे से भारत समेत पूरी दुनिया में खलबली मची हुई है कि कोविशील्ड टीक बनाने वाले कंपनी एस्ट्राजेनेका ने लंदन हाईकोर्ट में स्वीकार किया है कि उनकी कंपनी के टीके कोविशील्ड से दुर्लभ मामलों में खून का थक्का जम सकता है। इसके आलावा खून में प्लेटलेट कम कर सकता है। छत्तीसगढ़ में तकरीबन 2 करोड़ लोग कोरोना काल में वैक्सीनेट हुए थे और हेल्थ अफसरों का अनुमान है कि इनमें से लगभग डेढ़ करोड़ लोगों ने कोविशील्ड टीके लगवाए थे। कोवैक्सीन टीका देर से आया, इसलिए इसका कवरेज 20 से 25 फीसदी ही था, अर्थात छत्तीसगढ़ के करीब 40 लाख लोगों को कोवैक्सीन टीका लगा। इसे बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक का बयान आया है कि यह पूरी तरह सुरक्षित है और किसी तरह के साइड इफेक्ट रिपोर्ट नहीं हुए हैं।
द स्तंभ की पड़ताल के मुताबिक छत्तीसगढ़ में कोरोना काल में तकरीबन 2 करोड़ लोगों का वैक्सीनेशन हुआ था। भारत में अदार पूनावाला की कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ने कोविशील्ड टीका जल्दी बना लिया था और यह पूरे भारत में शुरू में ही सप्लाई हो गया था, इसलिए छत्तीसगढ़ में भी 70 प्रतिशत से अधिक (डेढ़ करोड़ से ज्यादा) लोगों ने कोविशील्ड वैक्सीन लगवाई थी। हालांकि दुनिया में कोविशील्ड के 90 प्रतिशत कवरेज का अनुमान है। खैर, छत्तीसगढ़ में इस टीके को ज्यादातर लोगों ने तब इसलिए भी लगवाया था क्योंकि एक तो यह जल्दी आया और दूसरा, काफी अरसे तक भारत और बाहर तथा हवाई यात्राओं में केवल इसी टीके को मान्यता मिली हुई थी। कोवैक्सीन टीका बाद में आया था। इसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी कुछ देर से मिली थी। इस वजह से छत्तीसगढ़ में 25-30 फीसदी अर्थात 40 से 45 लाख लोगों को ही कोवैक्सीन टीका लगाया गया।
हमने सुरक्षा को ध्यान में रखकर विकसित की कोवैक्सीनः भारत बायोटेक
कोविशील्ड को लेकर लंदन हाईकोर्ट में चल रहे 51 अदालती मामले के बीच, कोवैक्सीन लगवाने वालों के लिए बड़ी खबर यह है कि कोवैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक ने एक बयान जारी कर दिया है। इस बयान में भारत बायोटेक ने कहा़- कोवैक्सीन टीका पूरी तरह से सुरक्षित है। इसके कोई साइड इफेक्ट सामने नहीं आए हैं। जिन लोगों ने कोवैक्सीन लगवाई है, उन्हें इस टीके की वजह से शारीरिक रूप से कोई दुष्प्रभाव या साइड इफेक्ट की आशंका नहीं है। यह पहली वैक्सीन है, जिसका ट्रायल पूरी तरह भारत में ही हुआ है। हमने कोवैक्सीन को विकसित करने में लोगों की सुरक्षा के पहलू पर सबसे ज्यादा फोकस किया था।