प्रकाश स्तंभ
नया कानून चैप्टर-2: छापे मारेंगे तो वीडियो कौन बनाएगा…अंधेरे में मोबाइल से कैसे बनेगा…क्या गवाह वीडियो बनवाएंगे?
The Stambh: Research and Analysis
हमने आपसे कल भी कहा था कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत हुए सुधार नए जमाने और हालात को देखते हुए परफेक्शन के साथ किए गए हैं। यहां बात हो रही है बीएनएस को लागू करने में अहम रोल निभाने वाली पुलिस की, जिसके पास इतने संसाधन ही नहीं है कि कानून की अनिवार्यताओं का पालन किया जा सके। रायपुर समेत पूरे छत्तीसगढ़ में पुलिस के मैदानी अमले की कई समस्याएं हैं, कई बड़े सवाल भी हैं। रायपुर के थानों से लेकर नवा रायपुर में पुलिस मुख्यालय आम पुलिसवालों के मन में कई गंभीर सवाल हैं, जिनका संबंध व्यावहारिकता है। ऐसे तीन अहम सवाल आज सीरीज के दूसरे पार्ट मेंः
- छापों के लिए वीडियोग्राफर जाएगा या इसे भी पुलिस करेगीः आमतौर पर शहरी या ग्रामीण पुलिसिंग की स्थिति ऐसी है कि नशे के तस्कर हो, शराब स्मगलर या ऐसे ही छोटे-मोटे अपराधी, पुलिस जब छापे मारती है तो अमूमन तीन-चार लोग से ज्यादा कर्मचारी नहीं होते। हर थाना दिन में ऐसी एक-दो छापेमारी करता है, जिसमें जरूरी नहीं है कि कामयाबी ही मिले। छापामार दलों में इतनी फोर्स नहीं होती कि एक को वीडियो बनाने में लगाएं। थानों की यह कैपेसिटी नहीं है कि दिनभर एक कैमरामेन को बिठाकर रखें। ऐसे में छापामार दस्ते छापे मारेंगे, आरोपी पकड़ेंगे, माल जब्त करेंगे या वीडियो बनाएंगे।
- गवाह तो कोर्ट में मुकर जाते हैं, वीडियो में कौन आना चाहेगाः पुलिस हर कार्रवाई में गवाहों को पेश करती है। ये गवाह कौन होते हैं, कैसे बनाए जाते हैं, यह बात सभी जानते हैं। इसीलिए अक्सर ऐसा होता है कि गवाह कोर्ट में ये कह देता है कि मौके पर वह मौजूद नहीं था, पुलिस ने कब गवाह के तौर पर उसका नाम लिखा, उसे पता नहीं। इस परिस्थिति से बचने के लिए यह व्यवस्था की गई है कि कार्रवाई के साथ ही गवाह का वीडियो भी रहे, ताकि गवाह मुकर न सके। बड़ी दिक्कत ये है कि अभी पुलिस बड़ी मुश्किल से गवाह बना पाती है, क्योंकि लोग सामने आना नहीं चाहते। वीडियो बनेगा, तो फिर कौन आना चाहेगा।
- अंधेरे में मोबाइल से वीडियो कैसे बनेगा, जज को कैसे भेजेंगेः पुलिसवालों का तीसरा और अहम सवाल ये है कि अगर वे पर्सनल कैपेसिटी में, अपने मोबाइल से वीडियो बनाना शुरू करते हैं, तो बड़ी समस्या यह आएगी कि ज्यादातर कार्रवाई रात में होती है। अधिकांश पुलिसवालों को पास हाई रेजोल्यूशन वाले महंगे हैंडसेट नहीं होते। जो फोन ज्यादातर के पास हैं, उनसे रात में बने वीडियो में क्लैरिटी नहीं रहेगी। बतौर सबूत इसे अमान्य भी किया जा सकता है। दूसरा, अब तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि कार्रवाई के तुरंत बाद मजिस्ट्रेट को वीडियो उनके पर्सनल फोन पर भेजना है, या किसी प्लेटफार्म पर अपलोड करना है।