प्रकाश स्तंभ

छत्तीसगढ़ी युवाओं से खेल… प्रतियोगी परीक्षाओं में नंबर घटाने लगे छत्तीसगढ़ी के प्रश्न

जिन हजारों परिवारों के बच्चे कंपीटेटिव एग्जाम्स में, उनका बड़ा दर्द

कारण… जिनसे एक स्कोरिंग सब्जेक्ट धीरे-धीरे बड़ी परेशानी में बदलने लगा

  1. छत्तीसगढ़ी का मानकीकरण नहीं हुआ। इसलिए हर जगह शब्द-अर्थ में एकरूपता नहीं।
  2. कालेजों में छत्तीसगढ़ी पढ़ाई नहीं जाती, इसलिए इसका कोई फिक्स सिलेबस नहीं।
  3. कुछ लेखकों ने छत्तीसगढ़ी बोली पर पुस्तकें लिखी हैं, उनके अलावा कोई विकल्प नहीं।
  4. इन पुस्तकों में ही कई शब्दों के अर्थ अलग-अलग हैं। तैयारी करने वाली इससे कंफ्यूज हैं।
  5. उम्मीदवारों के लिए कोई ऐसा सिलेबस नहीं देता, जिस आधार पर वे तैयारी कर सकें।
  6. प्रतियोगी परीक्षा एजेंसियों को छत्तीसगढ़ी के प्रश्न जंचवाने पड़ रहे हिंदी प्रोफेसरों से।
  7. पहले ग्रंथ अकादमी के आंसर लेते थे, अब अलग-अलग साइट में अलग आंसर।

छत्तीसगढ़ में सरकारी नौकरी की प्रतियोगी परीक्षाओं में छत्तीसगढ़ी के प्रश्न इसलिए शुरू किए गए थे कि एक तो युवा यहां की संस्कृति और बोली को अच्छी तरह समझें और दूसरा, स्थानीय होने के कारण छत्तीसगढ़ी प्रश्नों के सहारे अच्छा स्कोर कर सकें। लेकिन बेहद तकनीकी कारणों से यह सुविधा छत्तीसगढ़ी युवाओं के लिए ही समस्या में तब्दील हो रही है। दरअसल प्रदेश में छत्तीसगढ़ी कई तरह से बोली जाती है, शब्दों के उच्चारण एवं अर्थ भी अलग हैं। जैसे, सरगुजा-बिलासपुर की बोली और रायपुर, दुर्ग की छत्तीसगढ़ी में खासा अंतर है, बस्तर में और अधिक। ऐसे में, जिन प्रश्नों के जवाब सरगुजा के युवाओं के लिए आसान हैं, तो रायपुर-दुर्ग के युवाओं को उसका अर्थ ही नहीं पता, क्योंकि वो शब्द यहां प्रचलित ही नहीं है। हाल में पीएससी प्रीलिम्स के एग्जाम में छत्तीसगढ़ी के ही दो प्रश्न विलोपित हुए, एक संशोधित करना पड़ा क्योंकि उनके उत्तर को लेकर वैसी ही अपत्तियां आईं, जिनका संबंध छत्तीसगढ़ी बोली कि विविधता से है।

द स्तंभ ने इस मुद्दे पर कई विशेषज्ञों और पीएससी समेत कंपीटिशन में हिस्सा लेने वाले युवाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी करवाने वाले शिक्षकों से बात की। अधिकांश ने सबसे पहले मुद्दा यही उठाया कि प्रतियोगी परीक्षाओं में छत्तीसगढ़ी के प्रश्न अब परेशानी बढ़ा रहे हैं। पड़ताल में यह बात सामने आई कि इसके कई कारण हैं, जिनका सामना युवा कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ी को भाषा का दर्जा नहीं मिलना प्रमुख है। इस वजह से छत्तीसगढ़ी का मानकीकरण नहीं हो पाया है। अर्थात, कोई ऐसा साहित्य नहीं बना है जो यह बता सके कि यही छत्तीसगढ़ी का फाइनल लिटरेचर है और हर परीक्षा में प्रश्न इसी के दायरे में आने हैं।

पुस्तकें तो हैं पर इनमें भी कई असमानताएं…फिक्स सिलेबस बनाना होगा

इस साल पीएससी प्री में सवा लाख से ज्यादा युवा शामिल हुए थे। छत्तीसगढ़ी के लिए अधिकांश ने दो-तीन पुस्तकों का सहारा लिया। इनके लेखकों में विनय पाठक और काब्योपाध्याय हैं। और भी पुस्तकें हैं, लेकिन यह बिलकुल तय नहीं है कि सभी पुस्तकों में सभी शब्दों के अर्थ एक-दूसरे से मिलते हों। जानकारों का कहना है कि सरकारी तौर पर जब तक विशेषज्ञों को लेकर सरकारी ग्रंथ अकादमी से सर्वमान्य पुस्तकें जारी नहीं होतीं और परीक्षा लेने वाली एजेंसियां यह स्पष्ट नहीं करतीं कि सिलेबस यही रहेगा, तब तक यह परेशानी बढ़ती ही रहेगी।

कन्नड़, तेलुगू, मलयालम की तरह छत्तीसगढ़ी को नहीं पढ़ाते स्कूल-कालेजों में

प्रतियोगी परीक्षाओं में छत्तीसगढ़ी बोली के प्रश्न शुरू कर दिए गए, लेकिन ज्यादातर उम्मीदवारों को इसका साहित्यिक ज्ञान या गूढ़ शब्दों के अर्थ पता नहीं है। वजह यह है कि छत्तीसगढ़ी स्कूल-कालेजों में पढ़ाई नहीं जाती। शहर-ग्रामीण अंचल में जो सुन-सुनकर सीख लिया, छत्तीसगढ़ी का ज्ञान उतना ही है। देश की हर बोली जो भाषा में तब्दील हुई, स्कूलों से ही पढ़ाई जाने लगती है। जैसे कन्नड़,तेलुगू या मलयालम संबंधित राज्यों के हर स्कूल में कंपलसरी है। इसलिए उनका लिटरेचर भी स्ट्रांग और एकरूप हो चुका है। इधर, छत्तीसगढ़ी स्कूल-कालेजों में पड़ाई ही नहीं जाती। पं. रविशंकर शुक्ल समेत कुछ यूनिवर्सिटीज ने छत्तीसगढ़ में पीजी कोर्सचलाया है। लेकिन इसका फायदा मिलने में अभी बरसों लगेंगे।

छत्तीसगढ़ी प्रश्न सेट करनेवालों और कापी जांचने वालों पर भी उठे सवाल

छत्तीसगढ़ी में प्रश्न सेट करनेवालों पर भी चर्चाएं होती रहती हैं। जैसे, इस बार पीएससी में एक प्रश्न अया जिसे जशपुर और उसके आसपास कुछ गांवों के अलावा पूरे छत्तीसगढ़ में कोई नहीं जानता। जाहिर है, वहां के युवाओ ने इसका सही आंसर लिखा। बाकी ने गलत किया या छोड़ना पड़ा। हर 40 किमी में बोली में बदलाव इसका बड़ा कारण है। प्रश्न सेट करने वाले अपने इलाके की या अपनी सीखी हुई बोली से प्रभावित रहते हैं, जिन्हें शेष छत्तीसगढ़ के लोग नहीं जानते। कहा तो यह भी जा रहा है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में छत्तीसगढ़ी की कापी जांचने वाले मूल्यांकनकर्ता नहीं है। इसलिए छत्तीसगढ़ी का अच्छा ज्ञान रखने वाले हिंदी के प्रोफेसर यह काम कर रहे हैं।

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