स्टील उद्योगों को उल्टी न पड़ जाए हड़तालः रिटा. इंजीनियर-अफसर उतर गए विरोध में
एसोसिएशन का सीएम साय को पत्र- छूट देना अनुचित, शासन पर तगड़ा भार पड़ेगा
रिटायर्ड पॉवर इंजीनियर्स-ऑफिसर्स एसोसिएशन ने सीएम विष्णुदेव साय को पत्र लिखकर स्टील उद्योगों द्वारा बिजली दरों में छूट लेने की कोशिश को पूरी तरह अनुचित करार दिया और कहा कि इससे शासन पर 1400 करोड़ रुपए का भार आ जाएगा। यही नहीं, इंजीनियरों ने कहा कि घरेलू उपभोक्ताओं और किसानों की बिजली दरें 20 पैसे बढ़ाई गईं और उद्योगों की दरों में केवल 25 पैसे की वृद्धि की गई है। सीएम को लिखे पत्र में एसोसिएशन ने कहा कि स्टील उद्योग नई बिजली दरों पर भ्रम पैदा कर रहा है और दावा कर रहा है कि बिजली 25 फीसदी महंगी कर दी गईं। यह सत्य से परे और गुमराह करनेवाली बात है।
एसोसिएशन ने सीएम को मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा कि नियामक आयोग ने बिजली दर में सिर्फ 4 प्रतिशत वृद्धि की है। लोड फैक्टर की अनुचित छूट को 25 से घटाकर दस प्रतिशत किया गया है। स्टील उद्योगों को फायदा देते हुए ऑफ पिक अवर्स 6 से बढ़ाकर 8 घंटे किया गया है, अर्थात अब उद्योगों को 8 घंटे तक 80 प्रतिशत दर पर ही बिजली मिलेगी। एसोसिएशन ने कहा कि हर साल जुलाई से नवम्बर तक लोहे की मांग कम रहती है, जिससे रेट गिरता है। इस वर्ष भी लोहा 42 रुपए से घटकर 35 रुपए प्रति किलो हो गया। अप्रैल-2020 में लोहे का मूल्य 26 हजार रुपए टन था, जबकि आज 35 हजार रुपए प्रति टन है। तुलनात्मक रुप से र्ष 2020 में बिजली दर 6.43 रुपए थी, जो आज लोड फैक्टर की छूट को सम्मिलित करने के बाद 7.50 रुपए यूनिट है। यदि ऑफ पिक अवर्स के लाभ को जोड़ा जाए तो ये दरें घटकर लगभग 7.44 रुपए प्रति यूनिट के आसपास हो जाएंगी।
थोड़ी सी छूट से सैकड़ों करोड़ का वित्तीय भार
रिटायर्ड पॉवर इंजीनियर्स-ऑफिसर्स एसोसिएशन ने गणना कर बताया कि यदि उद्योगों को उनकी मांग के अनुसार छूट दी जाती है, तो शासन को अनावश्यक वित्तीय भार उठाना पड़ेगा। प्रति यूनिट 1.40 रुपए की छूट देने पर शासन पर करीब 1600 करोड़ रुपए का भार आएगा। एक रुपए की छूट पर 1200 करोड़ रुपए और 50 पैसे की छूट पर 600 करोड़ रुपए का भार पड़ेगा। एसोसिएशन के मुताबिक लोहे के उद्योग पश्चिम बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ में हैं। छत्तीसगढ़ में बिजली की दरें इन सभी राज्यों से सबसे कम है। किसी भी राज्य में 25 प्रतिशत लोड फैक्टर की छूट नहीं मिलती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ की स्टील इंडस्ट्रीज द्वारा बेवजह अनुचित लाभ के लिए बिजली की दरों में वृद्धि को बहाना बनाते हुए गुमराह किया जा रहा है।