प्रकाश स्तंभ

प्रमोशन में आरक्षण रद्द नहीं, केवल भूपेश सरकार की अधिसूचना निरस्त, अब साय सरकार को 3 माह में नई नीति बनानी होगी

  • न्यूज एनालिसिस – नवाब फाजिल

 छत्तीसगढ़ शासन ने हाईकोर्ट के फैसले का अध्ययन शुरू कर दिया है। तीन माह में सरकार इस मामले को कैसे रीफ्रेम करेगी, यह कुछ दिन में स्पष्ट होगा। लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कई चुनावी सभाओं में ऐलान किया है कि छत्तीसगढ़ में किसी भी वर्ग का आरक्षण न तो खत्म किया जाएगा, और न ही कम किया जाएगा। इस तरह, यह कयास लगाए जा रहे हैं कि जून अंत या जुलाई में सरकार की तरफ से नई जो नया नोटिफिकेशन आएगा, उसमें प्रमोशन में एसटी के लिए 32 और एससी के लिए 13 प्रतिशत आरक्षण बरकरार रह सकता है।

सरकारी नौकरियों में प्रमोशन पर आरक्षण के मामले में मंगलवार को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जो फैसला दिया, कुछ प्रचार माध्यमों में उसकी व्याख्या इस तरह की जा रही है, जैसे अदालत ने छत्तीसगढ़ में प्रमोशन पर आरक्षण ही खत्म कर दिया है। द स्तंभ ने जब हाईकोर्ट के फैसले को लेकर छत्तीसगढ़ के विधि विशेषज्ञों, पूर्व एडवोकेट जनरल, याचिकाकर्ताओं और अभियोजन से जुड़े लोगों से बातचीत की, तो यह तथ्य सामने आया कि कोर्ट ने वह नोटिफिकेशन ही रद्द किया है, जो भूपेश सरकार 22 अक्टूबर 2019 को लेकर आई थी। प्रमोशन में आरक्षण रद्द नहीं हुआ, बल्कि हाईकोर्ट ने साय सरकार को निर्देश दिए हैं कि इस आदेश की कापी मिलने से तीन महीने के भीतर सुप्रीम कोर्ट की ओर से समय-समय पर जारी मापदंडों के अनुरूप प्रमोशन में आरक्षण की नीति पर फिर से कार्य करते हुए इसे रीफ्रेम किया जाए। इस तरह, अब यह स्थिति बन रही है कि भूपेश सरकार का नोटिफिकेशन रद्द होने के बाद प्रमोशन में आरक्षण को लेकर गेंद पूरी तरह साय सरकार के पाले में आ गई है। नए नोटिफिकेशन के जरिए सरकार आरक्षण में प्रमोशन को पूरी तरह रद्द करेगी, या फिर भूपेश सरकार के फैसले को जारी रखेगी, यह फैसला अब पूरी तरह से विष्णुदेव साय की भाजपा सरकार को ही करना है।

हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के आदेश का पैराग्राफ-35 जो पूरी स्थिति को स्पष्ट करता है…

  • The State Government is directed to rework / re-frame the subject Promotion Rules and to notify the same within a period of three months from the date of receiving a copy of this order in the light of judgment passed by the Hon’ble Supreme Court in M. Nagaraj’s case (supra), Jarnail Singh’s – I case (supra), B.K. Pavitra’s – II case (supra) and Jarnail Singh’s – II case (supra).

इस मामले की सुनवाई कर रही हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले के पैराग्राफ 31 में 22 अक्टूबर 2019 के नोटिफिकेशन को रद्द किया है। विधि विशेषज्ञों के अनुसार ये वही नोटिफिकेशन है, जो प्रमोशन में आरक्षण नियम 2003 तथा 2012 को संशोधित करके भूपेश बघेल सरकार लेकर आई थी। इस अधिसूचना में प्रमोशन में अनुसूचित जनजाति ( एसटी) को 32 प्रतिशत तथा अनुसूचित जाति (एससी) को 13 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था। वह अधिसूचना 100 बिंदु आरक्षण रोस्टर के साथ लाई गई थी। भूपेश सरकार के पूरे कार्यकाल के दौरान यह नियम लागू रहा। इस मामले में तत्कालीन एडवोकेट जनरल सतीशचंद्र वर्मा ने हाईकोर्ट में शासन का पक्ष  ताकतवर तरीके से रखा था। हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में शासन के पक्ष से हुई गलती का भी उल्लेख किया है, जिसे हम हूबहू प्रस्तुत कर रहे हैंः-

  • Further on 02.12.2019, the learned Advocate General had accepted that some inadvertent mistake has been crept in respect of the rules under challenge and that steps are being taking on war footing to have the same rectified.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने तर्कों के आधार पर तथा एक-एक बिंदु पर बारीके से रोशनी डालते हुए भूपेश सरकार के कार्यकाल में जारी अधिसूचना को रद्द करने का फैसला लिया है। अदालत ने यह निर्देश भी दिए कि सुप्रीम कोर्ट में जरनैल सिंह-2 के  कैडर वाइज डाटा के आधार पर मत व्यक्त किया है। गौरतलब है, कैडर वाइज डाटा पर सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2022 में फैसला दिया था। तब छत्तीसगढ़ शासन ने सुप्रीम कोर्ट के 2019 में बीके पवित्रा-2 और 2018 में जरनैल सिंह-1 फैसले के आधार पर डाटा कलेक्ट  करवाया तथा इसे जवाब7 के तौर पर अक्टूबर-2021 में कोर्ट में फाइल किया गया था। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के हेड नोट में हिंदी में साफ व्याख्या की गई है कि पदोन्नति में एसटी और एससी के लिए आरक्षण नीति सुप्रीम कोर्ट के अलग-अलग निर्देशों के आधार पर निर्धारित मापदंडों में मात्रात्मक डाटा एकत्र करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 164-ए और 164-बी के निहित प्रावधानों के आधार पर बनाई जा सकती है।

संविधान के आर्टिकल 16(4) के अनुसार प्रमोशन में आरक्षण खत्म नहीं हो सकता…

द स्तंभ ने इस मामले में विनोद कोसले तथा कुछ याचिकाकर्ताओं से भी बात की। उनका कहना है कि देश के संविधान में आर्टिकल 16(4) के जीवित रहने तक केंद्र या राज्य सरकारें पदोन्नति में आरक्षण खत्म नही कर सकेंगी। इसका कारण यह है कि 2006 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने 77वें और 85वें संविधान संशोधन की वैधता को बरकरार रखा है। आर्टिकल 16(4) के मुताबिक इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को अनुसूचित जातियों और जनजातियों के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य की सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, राज्य के अधीन सेवाओं में किसी वर्ग या वर्गों के पदों पर परिणामिक वरिष्ठता सहित प्रोन्नति के मामले में आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।

राज्य सरकार को प्रमोशन में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व होने पर आरक्षण देने से नहीं रोक सकते

संविधान विशेषज्ञ अधिवक्ता मनुराज सिंह ने द स्तंभ के साथ इस मुद्दे पर मंथन किया। उनके मुताबिक- भारतीय संविधान के 77वें संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 16(4-A) दिनांक 17 जून 1995 से पूरे देश में लागू हुआ। जिसके अनुसार राज्य सरकारें अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के पक्ष में पदोन्नति के मामलों में आरक्षण के लिये कोई भी प्रावधान कर सकती हैं, यदि राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। इसका आशय यह है कि राज्य सरकार को अधिकार है कि वह क्वांटिफाइएबल डाटा तथा अन्य निर्धारित मापदंडों के अनुरूप प्रमोशन में आरक्षण की नीति बनाए, इसे लागू करे या नहीं करे।

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