छत्तीसगढ़ में 20 साल भाजपा के स्टार रहे चाउर वाले बाबा डा. रमन पहली बार चुनाव से गायब
- खास खबर – नवाब फाजिल
छत्तीसगढ़ में डा. रमन सिंह 2002 में केंद्रीय मंत्री का पद छोड़कर प्रदेश की राजनीति में बतौर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष एक्टिव हुए एक साल के भीतर प्रदेश में भाजपा की सरकार बन गई, जबकि माना जा रहा था कि तत्कालीन सीएम स्व. अजीत जोगी को हरा पाना लगभग असंभव है। इस उपलब्धि के लिए भाजपा ने डा. रमन सिंह की बतौर सीएम ताजपोशी की। उसके बाद डा. रमन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 22 साल में उन्होंने छत्तीसगढ़ में किसी भी नेता की लोकप्रियता के सारे रिकार्ड अपने नाम कर लिए। भाजपा ने पिछले करीब दो दशक में अधिकांश चुनाव डा. रमन के चेहरे पर ही लड़े और कामयाबी हासिल की। जबकि कांग्रेस में अजीत जोगी से भूपेश बघेल तक, समय-समय पर अलग नेता स्टार रहे। पिछले 7-8 साल से छत्तीसगढ़ में स्टार का ताज पूर्व सीएम भूपेश के सिर पर है, लेकिन डा. रमन अकेले नेता हैं, जो भाजपा की तरफ से अकेले सितारे बने रहे। इस दौरान विपक्ष प्रदेश में केवल डा. रमन पर ही हमलावर रहा। वे हमलों को झेलते हुए अपनी छवि कायम रख पाने में कामयाब रहे। पांच माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में डा. रमन को भाजपा ने राजनांदगांव से उम्मीदवार बनाया और वे जीते। पिछले सालभर से भाजपा के ही लोग दबी जुबान में यह जरूर कहते सुने जाते थे कि अब वह बात नहीं है, लेकिन डा. रमन इन आलोचनाओं के बावजूद 2023 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा बने रहे और भाजपा सरकार बनाने में सफल हो गई। डा. रमन ने छत्तीसगढ़ विधानसभा के सभापति की जिम्मेदारी संभाली। लेकिन पिछले दो माह से भाजपा के पोस्टर-बैनरों में डा. रमन का चिरपरिचित मुस्कुराता चेहरा नजर नहीं आ रहा है। दिल्ली से आने वाले भाजपा के स्टार प्रचारक भी अपने भाषणों में उनका नाम नहीं ले रहे हैं। उनकी तीन बार की भाजपा सरकार के कार्यों का पार्टी में ही कोई जिक्र नहीं है। भाजपा और कांग्रेस नेता इस बात के अलग-अलग अर्थ निकालते हैं, अपनी तरह से व्याख्या कर रहे हैं, लेकिन आम आदमी को इस व्याख्या से कोई लेना-देना नहीं है। आम लोगों का मासूम का सवाल है- आखिर भाजपा ने अपने चाउर वाले बाबा को कहां छिपा दिया है…।
सभापति का प्रोटोकाल, कमर की सर्जरी के बहाने क्या भाजपा ने भुला दिया…
छत्तीसगढ़ के हजारों-लाखों युवा, जिन्होंने 2003 में पहली बार वोट किया था, उसके बाद 15 साल तक डा. रमन को न सिर्फ मुख्यमंत्री के रूप में देखा, बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं में उनपर आए सवाल भी हल किए और भूपेश सरकार बनने के बाद डा. रमन को पांच साल तक विपक्ष में केंद्रीय भूमिका में देखा, अब उनमें अक्सर यह चर्चा का मुद्दा रहता है कि क्या डा. रमन भी मार्गदर्शक मंडल की ओर अग्रसर कर दिए गए हैं। कुछ वरिष्ठ भाजपा नेता कहते हैं- विधानसभा के सभापति का एक संवैधानिक प्रोटोकाल होता है। डाक्टर साब की सर्जरी हुई है, बहुत मूवमेंट से डाक्टरों ने मना किया है। शायद इसीलिए पार्टी उन्हें कोई तकलीफ नहीं देना चाहती। वे छत्तीसगढ़ में भाजपा का बड़ा चेहरा थे और रहेंगे। भाजपा के स्टार प्रचारक डा. रमन का नाम क्यों नहीं ले रहे हैं, इसका जवाब भी वे सधे ढंग से ही देते हैं- चूंकि डा. रमन अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं है, सभापति भी हैं इसलिए सावधानी बरती जा रही होगी।
सबसे बड़े हमलावर रहे भूपेश भी भाषणों में डा. रमन का नाम नहीं ले रहे
डा. रमन को लेकर भाजपा में चाहे जिस तरह के तर्क-वितर्क हों, कांग्रेस के नेताओं का कांसेप्ट बिलकुल क्लीयर है। कुछ नेताओं का कहना है कि उनकी पार्टी ने ही उन्हें बिठा दिया, अब उनके बारे में क्या बोलना। 2016 में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद भूपेश के तरकश में जितने भी तीर थे, सब पर डा. रमन और उनकी सरकार का ही नाम लिखा था। डा. रमन पर राजनैतिक गोले-बारूद की बारिश करते हुए भूपेश 2018 में कांग्रेस की सरकार बनाने में कामयाब हुए। उसके बाद भी पांच साल यानी 2023 के विधानसभा चुनाव तक भूपेश ने डा. रमन पर निशाना लगाए रखा। लेकिन पिछले दो माह से डा. रमन के बारे में वे कम ही बोल रहे हैं, जबकि वे राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र के प्रत्याशी हैं। इस लोकसभा क्षेत्र की मुख्यालय वाली सीट राजनांदगांव शहर के डा. रमन ही विधायक हैं। सिर्फ भूपेश ही नहीं, डा. चरणदास महंत समेत कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं ने भी डा. रमन पर निशाना लगाना बंद कर दिया है।
ऐसा नहीं कि डा. रमन घर में बैठे हैं… तीन दिन से राजनांदगांव में बैठकें ले रहे
भाजपा के लोग भले ही सभापति के प्रोटोकाल और स्वास्थ्य पर बात कर रहे हों, लेकिन हकीकत ये है कि डा. रमन स्वस्थ महसूस करने के बाद तीन दिन पहले यानी रामनवमी के मौके पर राजनांदगांव पहुंच गए थे। वे वहां बैठकें ले रहे हैं, स्वास्थ्यगत असहजता के बावजूद कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं। वर्षों से उनके बेहद निकटस्थ सहयोगी रहे विक्रम सिसोदिया कहते हैं कि सभापति के संवैधानिक प्रोटोकाल का पालन जरूरी है। वे पूरी विधानसभा के अध्यक्ष हैं, जिनमें पक्ष और विपक्ष, दोनों के विधायक हैं। स्वास्थ्यगत कारण भी हैं। मार्च अंत में कमर की सर्जरी हुई है। डाक्टरों ने उन्हें कम से कम मूवमेंट की सलाह दी है। जहां तक उनके विधानसभा क्षेत्र का सवाल है, उनके पूर्व सांसद बेटे अभिषेक सिंह ने यह जिम्मेदारी संभाल रखी है। हाल में गृहमंत्री अमित शाह खैरागढ़ आए थे, तो उन्होंने अपना संबोधन शुरू करने से पहले पूर्व सांसदों के साथ अभिषेक सिंह का नाम भी लिया था, जो उस सभा में मौजूद थे। आखिरी बात… डा. रमन 1999 में राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के दिग्गज मोतीलाल वोरा को हराकर सांसद बने थे और बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलजी ने उन्हें अपनी कैबिनेट में भी रखा था।