आम चुनाव

भाजपा के कश्यप भतरा समाज, कांग्रेस के कवासी गोंड वर्ग से, यह बड़ा समीकरण

दक्षिण बस्तर समेत बड़े इलाकों में कथित नक्सल प्रेशर भी फैक्टर

  • राज गणित –  नवाब फाजिल

मैदानी इलाके के ज्यादातर लोगों के पास बस्तर लोकसभा सीट के चुनावी समीकरण की कम जानकारियां हैं। चौक-चौराहों की भविष्यवाणियों का आधार सुनी-सुनाई खबरों पर ही है। दरअसल छत्तीसगढ़ की बस्तर सीट हर मामले में स्पेशल है। पहली वजह, पिछले दो लोकसभा चुनावों में इस सीट से नोटा 40 हजार के आसपास रहा। यह चुनावी जागरुकता का सबब है या नक्सल प्रेशर, ये नहीं कह सकते। दूसरा, इस सीट पर जातीय समीकरण अक्सर हावी रहता है। दक्षिण बस्तर समेत यहां की करीब 6 विधानसभा सीटों पर गोंड समुदाय की बहुतायत है। कांग्रेस ने इसी समुदाय से कवासी लखमा को उतारा है। बस्तर, कोंडागांव और नारायणपुर में भतरा समाज काफी संख्या में हैं। भाजपा ने इस समुदाय के महेश कश्यप को टिकट दिया है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने गोंड समुदाय के दीपक बैज को उतारा था। उन्होंने काफी समय बाद कांग्रेस के लिए जीत का दरवाजा खोला था इस बार उनका टिकट काटकर लखमा को दिया गया है। बस्तर के राजनीतिक पंडित मानते हैं कि एक समीकरण यह भी है। एक वर्ग को लगता है कि आदिवासी वर्ग से छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनाया जाना और मोदी का करिश्मा इस सीट पर भी कोई न कोई संदेश दे भी सकता है। एक बात और, दोनों ही प्रमुख दलों के प्रदेश अध्यक्ष यहीं से हैं। कांग्रेस से दीपक बैज हैं, जो हाल में हुए विधानसभा चुनाव जीत नहीं पाए। वहीं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष किरण देव भी यहीं से हैं और विधानसभा चुनाव भी बड़े मार्जिन से जीता था।

स्तंभ ने उन आंकड़ों का विश्लेषण किया है, जो 2023 के विधानसभा चुनाव के हैं। 2018 के विधानसभा में पूरी की पूरी सीटें जीतनेवाली कांग्रेस के लिए 2023 का चुनाव निराश करनेवाला था। कांग्रेस यहां की 8 में से केवल 3 सीटें जीत पाई, वह भी मामूली अंतर से। जीतनेवालों में कोंटा से लखमा भी हैं, जिन्हें कांग्रेस ने मैदान में उतारा है। जहां तक भाजपा का सवाल है, पार्टी ने विधानसभा चुनाव में 5 सीटों पर परचम लहराया था। पार्टी के अधिकांश उम्मीदवार अच्छे वोटों से जीते। लोकसभा सीट में कुल पार्टीवार लीड की बात करें, तो भाजपा के पास 81 हजार से ज्यादा वोटों की बढ़त है। यह बढ़त चर्चाओं के लिए एकमात्र तथ्य है, जबकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव की प्रकृति बिलकुल अलग रहती है और बस्तर में रही भी है।

बलिराम कश्यप और बाद में परिवार का भी रहा दबदबा

भाजपा के दिग्गज बलिराम कश्यप और उनके परिवार ने बस्तर लोकसभा में कई बार जीत का परचम लहराया। खुद बलिराम 2004 में अंतिम बार सांसद बने। खास बात ये है कि उस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस से कवासी लखमा को हराया था, जो इस बार भी मैदान में हैं। इसके बाद 2011 उपचुनाव तथा 2014 के चुनाव में उनके बेटे दिनेश कश्यप बड़े अंतर से बस्तर संसदीय सीट जीतने में कामयाब हुए। लेकिन भाजपा ने 2019 में दिनेश का टिकट काटकर बैदूराम को दिया। कांग्रेस ने युवा दीपक बैज को पहली बार उतारा और बैज ने काफी अरसे बाद यह सीट कांग्रेस की झोली में डाली। लेकिन इस बार कांग्रेस ने बैज को काटकर लखमा को उतार दिया है। कश्यप परिवार से इस समय केदार कश्यप छत्तीसगढ़ के मंत्री हैं और भाजपा को महेश कश्यप की मदद के लिए उन पर काफी भरोसा है।

बस्तर टाइगर कर्मा के परिवार को अब टिकट नहीं

यह लोकसभा सीट बस्तर टाइगर तथा झीरम के शहीद महेंद्र कर्मा के नाम से भी जानी जाती है। हालांकि कांग्रेस ने आखिरी बात उनके बेटे को 2011 में टिकट दिया था और वे जीत नहीं पाए थे। उसके बाद से इस संसदीय सीट से कांग्रेस ने कर्मा परिवार को नहीं उतारा। केवल दंतेवाड़ा सीट पर ही उन्हें टिकट दिया जा रहा है। पिछला चुनाव कर्मा की पत्नी देवती कर्मा ने जीता था, लेकिन इस बार उनके बेटे दंतेवाड़ा से चुनाव हार चुके हैं।

बस्तर में 5 विस सीटें भाजपा, 3 पर कांग्रेस

कोंडागांव  – 18572 भाजपा

नारायणपुर – 19188 भाजपा

बस्तर – 6434 कांग्रेस

जगदलपुर – 29834 भाजपा

चित्रकोट – 8370 भाजपा

दंतेवाड़ा – 16803 भाजपा

बीजापुर – 2706 कांग्रेस

कोंटा – 1981 कांग्रेस

विधानसभा चुनाव में बढ़त

भाजपा (पांच सीटें) – 92947

कांग्रेस (तीन सीटें) – 11121

विस चुनाव की कुल लीड – 81826 भाजपा

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