प्रकाश स्तंभ

नया कानून चैप्टर-1: पुलिस के पास वीडियो-पेन ड्राइव नहीं तो छूटेंगे अपराधी…जैसा उत्तराखंड में नारको का आरोपी छूटा

The Stambh - Reserch and Analysis

नया कानून यानी भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) निःसंदेह पुलिस के लिए एक बड़ा और सकारात्मक कानूनी सुधार है, लेकिन इसे अच्छी तरह से लागू करना (implementation) थाने और जिलों की पुलिस के उपलब्ध मौजूदा संसाधनों से फिलहाल संभव नहीं लग रहा है। वजह ये है कि नए कानून में जिन संसाधनों का उल्लेख किया गया है, अगर पुलिस के पास वह नहीं हैं तो इसका सीधा फायदा अपराधियों को मिलने की पूरी आशंका है। इस सीरीज में हम उदाहरण लेकर आएंगे कि किस तरह इन संसाधनों की कमी से अपराधियों को फायदा हो सकता है। जैसे- उत्तराखंड पुलिस ने उधमसिंह नगर के न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में ड्रग्स के साथ पकड़कर 2 जुलाई को पेश किए गए भोला नाम के एक आरोपी को लेकर हुआ है। नारकोटिक्स (एनडीपीएस) जैसे गंभीर मामले में पुलिस ने इस आरोपी को कोर्ट में पेश किया और जरूरी पूछताछ के लिए उसकी रिमांड मांगी। लेकिन जज ने रिमांड की सुनवाई के बाद लिखा कि पुलिस को आरोपी के ठिकाने पर रेड, जब्त सामग्री और विटनेस की वीडियोग्राफी करनी थी। यह किसी भी डिवाइस यानी मोबाइल से हो सकती थी और इसे भी बतौर साक्ष्य प्रथम श्रेणी न्यायालय में तुरंत पेश करना था, क्योंकि नए कानून की धारा 185 में इसका उल्लेख है। कोर्ट ने लिखा कि आरोपी को पेश करते समय इन साक्ष्यों का नहीं होना न्यायोचित नहीं है। गृह मंत्रालय ने बीएनएस की धारा 105 के तहत आडियो-विजुअल रिकार्डिंग की एसओपी जारी की है, अतः इसका पालन किया जाना अनिवार्य है। इस आधार पर मजिस्ट्रेट ने न केवल पुलिस रिमांड की अर्जी नामंजूर कर दी, बल्कि आरोपी को 20 हजार रुपए के मुचलके पर इस आदेश के साथ छोड़ा कि जब भी पुलिस बुलाएगी, वह सहयोग करेगा। द स्तंभ की खबर में उत्तराखंड के इस आदेश की कापी भी अटैच है।

छत्तीसगढ़ पुलिस के लिए ये हालात टेंशन पैदा करने वाले हैं, क्योंकि यहां के थानों में इलेक्ट्रानिक डिवाइस तो दूर, स्टेशनरी तक उपलब्ध नहीं है। इसे साबित नहीं किया जा सकता, लेकिन थानों में जितने भी लोग रिपोर्ट लिखवाने के लिए पहुंचते हैं, उनमें से अधिकांश को विवेचक कागज और कार्बन लाने के लिए कहते हैं। यह परंपरा बन गई है, क्योंकि कोर्ट में जो भी डायरी पेश होती है, उसमें स्टेशनरी का महत्व है। समस्या ये है कि किसी केस में आडियो-वीडियो विजुअल जरूरी है, मोबाइल या जिस इलेक्ट्रानिक डिवाइस से छापे-जब्ती और सबूतों का वीडियो बनाया गया, उसे पेश करना अनिवार्य है तो क्या छापा मारने वाला पुलिस अफसर  मोबाइल से वीडियो बनाकर अपनी डिवाइस को कोर्ट में पेश करेगा। इसका उपाय यह बताया गया है कि ऐसे वीडियो पेन ड्राइव में कोर्ट को फारवर्ड किए जा सकते हैं। लेकिन रायपुर के किसी थाने में पुलिस के पास न तो कोई वीडियोग्राफर है, और न ही सरकारी पेन ड्राइव है, जिसमें वीडियो और सबूत अपलोड कर इसे कोर्ट में पेश किया जा सके।

ट्रेनिंग दी पर नहीं बताया कि संसाधन कैसे जुगाड़ें

पुलिस महकमा नए कानून को लेकर लगातार ट्रेनिंग दे रहा है, लेकिन जिन्होंने ट्रेनिंग ली है, उन्हें अब तक यह नहीं बताया गया है कि इस तरह के संसाधन उन्हें खुद अरेंज करने हैं, या फिर पुलिस मुख्यालय अथवा गृह विभाग इसे उपलब्ध करवाएगा। इस तरह की दिक्कतों की पुलिस महकमे में चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं। फील्ड पर तैनात अफसरों का बड़ा टेंशन यही है कि जरूरी संसाधनों की व्यवस्था अगर उन्हें करनी है, तो क्या इन्हें भी फरियादी से मंगवाया जाए, जैसा अब तक कागज के दस्ते मंगवाते रहे हैं। या फिर शासन स्तर पर बड़े पैमाने पर इनकी खरीदी होगी और फिर इसे थानों तक पहुंचाया जाएगा। खरीदी की प्रक्रिया कठिन है, इसके प्रस्ताव हफ्तों तक विभाग से लेकर मंत्रालय में भटकते रहते हैं। तब तक अगर पुलिस वीडियो नहीं बनाएगी और न्यायालय को नए कानून की अनिवार्यताओं को पूरा नहीं करेगी, तो क्या अपराधियों को पुलिस की इस चूक का बड़ा फायदा मिलता रहेगा?

उत्तराखंड के केस में हुए आदेश की कापी

 

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button