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कवर्धा में ऐसा नारी सशक्तिकरण… महिलाओं ने चुनाव जीता, शपथ पंच-पति ने ली… शपथ दिलाने वाला पंचायत सचिव सस्पेंड

छत्तीसगढ़ में कवर्धा जिले की जिस पंडरिया विधानसभा सीट पर विधायक महिला (भावना बोहरा) हैं, वहां ऐसी राजनैतिक घटना हुई है जैसी प्रदेश में कहीं नहीं हुई। जनपद पंचायत पंडरिया के गांव परसवारा में चार महिलाओं ने पंच का चुनाव जीता था। 3 मार्च को उनका शपथग्रहण समारोह रखा गया, लेकिन एक भी महिला पंच ने शपथ नहीं ली बल्कि हर महिला पंच के पति को शपथ दिला दी गई। यह अनोखा मामला दो दिन बाद मीडिया रिपोर्ट्स के जरिए बाहर आया तो बवाल मच गया। कवर्धा जिला पंचायत सीईओ अजय त्रिपाठी ने जांच करवाई तो यह बात सही निकली कि जीती हुई हर महिला पंच की जगह उनके पति को शपथ दिला दी गई है। इस मामले में ग्राम पंचायत परसवारा के सचिव प्रणीवर सिंह ठाकुर को सस्पेंड कर दिया गया है। अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि सारे नियम-कायदे जानते हुए पंचायत सचिव ने पंच-पतियों को शपथ क्यों दिलवाई गई। जानकारों के मुताबिक गांव में पुरुषों के दबाव को पंचायत सचिव झेल नहीं पाया और उसे ऐसा करना पड़ा। जिस वक्त पंच-पतियों को शपथ दिलाई जा रही है, सरपंच समेत किसी भी अन्य पंच ने विरोध नहीं किया।

दरअसल छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे देश में ऐसा चल रहा है कि पति राजनीति करते हैं लेकिन अगर उनका क्षेत्र किसी कारणवश महिलाओं के आरक्षित हो गया, तो वे अपने परिवार की महिलाओं को ही मैदान में उतारते हैं। चुनाव पुरुषों के चेहरे पर ही लड़ा जाता है और जीतने के बाद काम भी वही करते हैं। गांवों की बात तो दूर, ऐसा रायपुर में भी हो रहा है। पुरुष अगर अपने परिवार की किसी महिला को चुनाव लड़वाते हैं, तो ध्यान दीजिएगा कि उनका नाम में केवल इनीशियल ही उनका रहता है, बाकी पूरा नाम पति का रहता है। चाहे नगरीय निकाय हो या फिर पंचायत, महिला भले ही जीत जाए लेकिन ज्यादातर मामलों में जीती हुई महिलाएं घर चलाती हैं और राजनीति पति ही संभालते हैं। राजनैतिक दलों में सक्रिय महिलाएं अक्सर विरोध करती हैं कि ऐसी महिला को टिकट दिया जाना चाहिए, जो खुद राजनीति कर रही हो। लेकिन अधिकांश राजनैतिक दल अब भी पुरुष राजनीतिज्ञों की रिश्तेदार महिलाओं को ही टिकट देना प्रिफर कर रहे हैं। रायपुर में भाजपा और कांग्रेस, दोनों दलों के प्रत्याशियों की सूची निकालेंगे तो ज्यादातर मामले ऐसे ही मिलेंगे। परसवारा ग्राम पंचायत में पंच-पतियों की शपथ इसी सोच का बिगड़ा स्वरूप माना जा सकता है।

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