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राजनांदगांव कलेक्टर-डीईओ का सुशासनः दो साल से स्कूल में टीचर नहीं…बच्चियां यही मांगने गई थीं…फूट-फूट कर रोती हुई लौटीं

News & Analysis : Nawab Fazil

राजनांदगांव कलेक्टोरेट में मंगलवार को जो हुआ, पहले उसे समझ लीजिए। नजदीकी गांव की 11वीं-12वीं की कुछ बच्चियां आवेदन लेकर कलेक्टर के पास पहुंचीं कि उनके स्कूल में दो साल से हायर सेकेंडरी स्कूल के टीचर नहीं हैं, दिलवा दीजिए। कलेक्टर पूरे जिले के मालिक होते हैं। दो साल से स्कूल में टीचर नहीं हैं, इस बात पर जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) की क्लास लेने के बजाय कलेक्टर ने बच्चियों को डीईओ के पास ही भेज दिया। यह था सुशासन के तहत काम के डिस्पोजल का पहला उदाहरण…। बच्चियां डीईओ के चैंबर में पहुंचीं और थोड़ी देर में रोती हुई बाहर आ गईं। बच्चियों ने कहा कि डीईओ ने टीचर पर बात नहीं की, बल्कि ये कहकर धमकाया कि जानता हूं, एप्लीकेशन किसने लिखवाया है, किसने भेजा है…? घबराई बच्चियां चैंबर से बाहर निकल गईं। यह था काम के शानदार फाइनल-ब्रूटल डिस्पोजल का दूसरा उदाहरण।

बच्चियां रो रही थीं, इसलिए मीडिया ने घेरा। बच्चियों ने रोते हुए ही आपबीती बताई कि टीचर नहीं होने से स्कूल में कैसी परेशानी झेल रही हैं। पूरा वीडिया है, जिसमें बच्चियां बता रही हैं कि डीईओ ने किस तरह धमकाया। खैर, अफसरों ने पूरे मैटर को ही डिस्पोज आफ कर जबर्दस्त सुशासन का उदाहरण पेश कर दिया। अब बात बढ़ी है, तो उसी तरह के सरकारी तर्क आ रहे हैं, जो सस्पेंड किए जाने से पहले मानपुर तहसीलदार ने दिए थे था… ऐसा कुछ नहीं हुआ। राजनैतिक साजिश है…मीडिया ट्रायल है वगैरह। सरकार ने भी अब तक कलेक्टर और डीईओ, दोनों से नहीं पूछा है कि क्या वाकई स्कूल में दो साल से टीचर नहीं हैं? अगर नहीं हैं, तो क्या अब गांव के स्कूल में टीचर भी सरकार  भेजेगी? अगर सरकार ही भेजेगी तो आप वहां क्यों हैं?

बच्चियों से मीडिया की बातचीत का वीडियो कोई गोपनीय क्लिप नहीं है। यह पूरे राजनांदगांव में वायरल है और धीरे-धीरे रायपुर पहुंच रहा है। वीडियो में बच्चियां बता रही हैं कि प्राइमरी से हाईस्कूल तक उनके यहां कुल 5 टीचर हैं। किसी तरह पढ़कर 10वीं पास की, अब 11वीं में आ गईं। हायर सेकेंडरी में दो साल से टीचर ही नहीं हैं। अगर टीचर नहीं है, तो पढ़ाई हो पाना मुश्किल है। भले ही किसी ने भी गाइड किया हो, लेकिन वे तो टीचर मांगने के लिए ही राजनांदगांव पहुंची थीं। बच्चियों के मुताबिक- यहां कलेक्टर साब से मिलीं और पूरी व्यथा सुनाई। इसके बाद कलेक्टर साब ने बच्चियों को तत्काल डीईओ के पास भेज दिया। यहां रायपुर में कई जिलों में कलेक्टरी करने के बाद सचिव-पीएस-एसीएस-सीएस बन चुके अच्छे आईएएस अफसर हैं। उनमें से कुछ से इस बारे में बात की तो वे भी चौंके। कहा कि बच्चियों को डीईओ के पास भेजने के बजाय कलेक्टर खुद डीईओ को बुलवाकर क्लास लगा सकते थे। पता नहीं, उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया? खैर, बच्चियां डीईओ के कक्ष में गईं। बच्चियों का कहना है कि टीचर की मांग सुनते ही वे भड़क गए और बच्चियों को जमकर डिमोरलाइज किया। इतना भी कि मांग तो एक किनारे गई, बच्चियां रोकर बाहर आ गईं। दोपहर के बाद अमूमन अधिकांश रिपोर्ट जिलों में कलेक्टर-एसपी परिसर में खबरों के चक्कर में घूमते हैं। रोती बच्चियों को देखकर मीडिया ने उन्हें घेरा और इस तरह पूरी बात बाहर आ गई। राजनांदगांव से खबरें आ रही हैं कि अफसरों ने इस संकट से निपटने के लिए क्राइसिस मैनेजमेंट पर काम शुरू कर दिया है। क्राइसिस मैनेजमेंट यानी इस संकट को किसी और पर उलट देना, ताकि बच सकें। इसके कई तरीके हैं जैसे… बच्चियों को एक लोकल नेता ने भड़काकर भेज दिया… पढ़ती-वढ़ती हैं नहीं, कितने टीचर भेजते रहें… बात को बढ़ाने के पीछे मीडिया की कोई चाल है… और अंत में- सब कुछ झूठ और मनगढ़ंत है, बच्चियों से कोई दुर्व्यवहार नहीं हुआ है…।

संवेदनशील सरकार को ये तो पूछना ही चाहिए

  1. क्या वाकई उस गांव में हायर सेकेंडरी के टीचर नहीं हैं?
  2. अगर यह बात सच है तो टीचर कितने साल से नहीं हैं?
  3. वहां टीचर भेजने के अब तक कितने प्रयास किए गए हैं?
  4. टीचर नहीं जाएंगे तो बच्चे 12वीं तक पढ़ाई कैसे करेंगे?
  5. बच्चियों को किस तरह धमकाया कि रोते हुए निकलीं?
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