राजधानी में चौराहों पर इलाज के लिए मदद मांगने वालों के पास QR Code भी…क्या इस तरह हेल्प करना सेफ है?
ऐसी मदद सुरक्षित या नहीं...आला पुलिस अफसरों की राय अगली खबर में
राजधानी में रात में कुछ चौराहों, सार्वजनिक स्थलों और यहां तक कि शाम को मंत्रालय के बाहर भीड़ में भी इलाज के लिए मदद मांगने वाले कुछ लोग नजर आ रहे हैं, जिनकी मदद वाली तख्तियों पर बाकायदा क्यूआर कोड भी है। यह इसलिए कि अगर आप कैश न देना चाहें तो सीधे मोबाइल से इस क्यूआर कोड के जरिए आनलाइन पैसे ट्रांसफर कर दें। रायपुर के लोग छोटी-मोटी मदद के मामले में संभवतः पूरे हिंदुस्तान में सबसे आगे हैं। लेकिन क्यूआर कोड वाला सिस्टम उन्हें परेशान कर रहा है। द स्तंभ को कुछ पाठकों ने क्यूआर कोड वाली तख्तियों की तस्वीर चुपचाप लेकर भेजी है और पूछा है कि क्या इन क्यूआर कोड्स पर पैसे डालना सेफ होगा? राजधानी के आला पुलिस अफसरों से यह सवाल है कि वे क्यूआर कोड्स के साथ मदद मांगनेवालों के बारे में अपने नेटवर्क से पता लगाकर लोगों को जरूर एजुकेट कर दे, ताकि कोई संशय नहीं रहे।
रायपुर में ऐसे समाजसेवी युवा बड़ी संख्या में हैं, जो किसी जरूरतमंद को आपस में पैसे कलेक्ट करके मदद कर देते हैं। अगर कलेक्ट हुए पैसे कम पड़ते हैं तो वे गली-मोहल्लों में भी लोगों से इसलिए थोड़े-बहुत पैसे इकट्ठा कर लेते हैं, क्योंकि उन पर लोगों का विश्वास होता है। लेकिन ऐसे युवा सार्वजनिक स्थलों या चौक-चौराहों पर मदद मांगने नहीं जाते, क्योंकि वे खुद इतने सक्षम होते हैं कि अपने आसपास ही बड़ा कलेक्शन कर लेते हैं। इसीलिए रात में इस तरह की मदद मांगने वाले, खासकर क्यूआर कोड के साथ मदद की गुहार लगाने वालों के बारे में लोग क्लीयर होना चाहते हैं कि वे सही हैं या नहीं। हम उन पर सवाल नहीं उठा रहे हैं, यह संभव है कि वे सही हों और वाकई किसी की मदद करने के लिए निकले हों। लेकिन सायबर फ्राड बढ़ गया है, बैंक खातों पर कई तरह से सेंध लग रही है, इसलिए लोग चाहकर भी मदद के लिए क्यूआर कोड स्कैन करने से डर रहे हैं। तख्तियों में क्यूआर कोड के साथ मदद मांगने वाले शास्त्री चौक पर, तेलीबांधा चौक और तेलीबांधा तालाब के सामने रात में नजर आते हैं। वे जयस्तंभ चौक, शारदा चौक, कालीबाड़ी चौक या फाफाडीह चौक पर नहीं दिखते, जहां पुलिस का लगातार आना-जाना रहता है। यह बात भी मददगारों को आशंकित करती है कि ऐसे लोग अगर सही हैं, तो थानों के सामने, वर्किंग टाइम में कलेक्टर-एसपी दफ्तर के सामने या ऐसी जगहों पर तख्तियां लेकर क्यों नहीं खड़े होते, जिन जगहों को लोग सेफ समझते हैं और क्यूआर कोड बिना किसी डर के स्कैन कर सकते हैं। जिन सुधी पाठकों ने द स्तंभ को ऐसी तस्वीरें भेजी हैं, उनका सवाल है कि पुलिस एक बार ऐसे लोगों के बारे में स्पष्टता कर देगी कि ये सही हैं, तो मदद करनेवाले बिना किसी झिझक के किसी के इलाज के लिए कंट्रीब्यूट कर सकते हैं। अगर पुलिस नहीं बताएगी, तो यह आशंका बनी रहेगी कि क्यूआर कोड स्कैन करके वे किसी चक्कर में तो नहीं पड़ जाएंगे?