प्रकाश स्तंभ

स्काईवाक बनेगा कैसे…6 साल में हर नट में जंग, ढांचा स्क्रैप…काफी सामान बदलेगा तो खर्चा भी डबल…इसलिए बारीक जांच करवा रहे सीएम साय

ढांचे के हर कोने पर परखना जरूरी...क्योंकि सवाल हजारों लोगों की सुरक्षा का भी

स्काईवाक को दोबारा बनाने के लिए सीएम विष्णुदेव साय ने एक्सपर्ट्स के साथ मंथन शुरू कर दिया है। सरकार इसे बनाकर आम लोगों के लिए चालू करना चाहती है, लेकिन अब यह काम बेहद चुनौतीपूर्ण हो चुका है। द स्तंभ ने निर्माण विशेषज्ञों, इंजीनियरों और आर्किटेक्ट्स से बात की, तो दोबारा निर्माण की बड़ी चुनौतियां सामने आई हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक जो ढांचा 6 साल से खड़ा है, मेंटेनेंस नहीं होने के कारण लोहे के उस स्ट्रक्चर के एक-एक नट पर जंग लगना तय है। बारिश-धूप से ढांचे का काफी सामान इस तरह बर्बाद हुआ होगा कि उसका अब उपयोग करना खतरनाक भी हो सकता है। जो कंपनी छह साल पहले तक इसे 70 करोड़ रुपए तक में बना पा रही थी, पांच साल में वह तो किसी स्थिति में उसी लागत में बनाने के लिए तैयार नहीं होगी। अगर पुरानी कंपनी नहीं बनाएगी, तो नई कंपनी को काम देने के लिए बड़ी प्रक्रिया पूरी करनी होगी। सरकार के तकनीकी विशेषज्ञों के लिए बड़ा मामला यह भी है कि पिलर्स के सहारे हवा में खड़े इस जंग लगे ढांचे का एक-एक ज्वाइंट चेक करना पड़ेगा। क्योंकि स्काईवाक पर और उसके नीचे सड़क पर रोजाना शहर के हजारों लोगों को गुजरना है। इसलिए पुराने ढांचे के एक नट पर भी सरकार रिस्क लेने तैयार नहीं है।

छह साल से जंग खाते देख रहे शहर के लोग

रायपुर में ट्रैफिक के कारण पैदल चलनेवालों की दिक्कतें दूर करने के लिए स्काईवाक बनाने का कांसेप्ट 2016-17 में फाइनल हुआ, टेंडर किया गया और काम शुरू हुआ। तब प्रदेश में डा. रमन सिंह की सरकार थी और स्काईवाक के मूल प्लानर तत्कालीन पीडब्लूडी मंत्री राजेश मूणत थे। अंबेडकर अस्पताल से शास्त्री चौक, जयस्तंभ चौक और कलेक्टोरेट तिराहे तक सड़क पर पैदल लोगों के लिए इसे डिजाइन किया गया। बाद में ऐसी सुविधा भी जोड़ने की तैयारी की गई कि अंबेडकर अस्पताल और डीकेएस के पेशेंट को इसी ले लाया-ले जाया जा सके। करीब 50 करोड़ रुपए की लागत के इस निर्माण की लागत 75 करोड़ के आसपास हो गई थी। शास्त्री चौक की रोटेटरी भिलाई में बनकर रेडी थी, कंपनी एस्कलेटर्स भी ले आई थी। लेकिन 2018 में कांग्रेस सरकार आई और स्काईवाक का काम बंद कर दिया गया। स्काई वाक भूपेश सरकार की बड़ी नाकामी मानी जा सकती है, क्योंकि पूरी सरकार मिलकर पांच साल में यह फैसला नहीं ले पाई कि इसे रखना है, दूसरा शेप देना है या गिरा देना है। रायपुर के लोग पांच साल इस पूरे ढांचे को बर्बाद होते और जंग खाते देखते रहे। तत्कालीन सरकार या यह अनिर्णय रायपुर की चारों विधानसभा के नतीजों में भी थोड़ा-बहुत रिफ्लेक्ट हुआ, क्योंकि लोगों के मन में यह बात आ गई कि फैसला ही नहीं कर पा रहे हैं। जबकि स्काई वाक पर फैसले के लिए पांच साल में कई कमेटियां बनीं, केवल मंथन ही होता रहा और अंत में फैसला आया कि नहीं बनाना है। यह तय नहीं हो पाया कि बनाना नहीं है, तो फिर क्या करना है। कुछ कांग्रेसी इस कुतर्क के साथ अब भी जरूर खड़े नजर आते हैं कि नहीं बनाना है, मतलब कुछ नहीं करना है।

हाई-लेवल टेक्निकल कमेटियां बनानी होंगी

सीएम साय ने पीडब्लूडी मंत्री अरुण साव और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ बुधवार और गुरुवार को स्काईवाक को नए सिरे से बनाकर शुरू करने पर मंथन किया है। बताते हैं कि विशेषज्ञों ने उनके सामने भी तकनीकी दिक्कतें लाई हैं। यह भी कहा गया कि दो तरह की प्रक्रिया शुरू करनी होगी। पहली, पूरे स्काईवाक को तकनीकी विशेषज्ञों की टीम बारीकी से हर कोने की जांचे कि कौन-कौन सा सामान खराब हो चुका, जिसे बदलना ही होगा। विशेषज्ञ यह भी विश्लेषण करेंगे कि डिजाइन में कुछ और फेरबदल से स्काईवाक क्या और उपयोगी हो सकता है। दूसरी तरफ,  विशेषज्ञों और अफसरों के एक दल को इस काम में लगाना होगा कि नुकसान के बाद नई लागत का असेसमेंट किया जाए। इसे जोड़कर नई लागत तय की जाए। इसके बाद पुरानी कंपनी से बातचीत की जाए कि क्या वह फिर निर्माण करेगी। अगर करेगी तो किस लागत में। अगर वह कंपनी तैयार नहीं हो, तो दोबारा टेंडर करना होगा। जो कंपनी बनी हुई संरचना को फिनिश करने के लिए आएगी, वह अपने शर्तें भी लगाएगी। ये शर्तें कितनी वाजिब होंगी वगैरह। बता चला है कि सीएम साय इस मामले में बेहद फूंक-फूंककर चलना चाहते हैं। इसलिए अभी स्काईवाक को लेकर कई तरह की कमेटियां बनेंगी, जो बारीकी से विश्लेषण करेंगी। इस विश्लेषण में दो-तीन महीने लग जाएंगे। उम्मीद करिए कि अगर इसी विशेषज्ञों ने इसी ढांचे पर निर्माम को हरी झंडी दे दी, तब भी काम दिवाली के बाद ही शुरू हो सकता है, उससे पहले बिलकुल नहीं।

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