कांग्रेसी मुखर होने लगे, चर्चाएं- राधिका भाजपा में जाने की प्लानिंग करके आईं, पहले दिन से गुट बनाया
कांग्रेस प्रवक्ता राधिका खेड़ा के इस्तीफे के तुरंत बाद अब छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी मुखर होने लगे हैं। खुलकर तो नहीं, लेकिन राजीव भवन के भीतर-बाहर जो चर्चाएं चल रही हैं, उनमें कहा जा रहा है कि राधिका खेड़ा कथित तौर पर कांग्रेस छोड़ने और भाजपा में जाने की प्लानिंग करके आई थीं। आते ही उन्होंने ऐसे कांग्रेसियों को अपने इर्द-गिर्द रखा, जिन्हें छत्तीसगढ़ में पूर्व सीएम भूपेश बघेल का समर्थक नहीं माना जाता। यही वजह है कि राजीव भवन में विवाद के अगले ही दिन उन्होंने सीधे भूपेश बघेल पर निशाना साधा था कि वे सुशील आनंद शुक्ला को बचा रहे हैं। राहुल गांधी की न्याय यात्रा की शुरुआत में रायपुर से असम गए कुछ नेताओं ने द स्तंभ को बताया कि वहां दिल्ली की महिला प्रवक्ताओं में केवल सुप्रिया श्रीनेत ही पूरी तन्मयता से जिम्मेदारी संभालती नजर आती थीं। राधिका उस यात्रा में भी स्थायी रूप से नजर नहीं आई थीं।
रायपुर में राधिका को एक वायरल वीडियो में रोते हुए सुना गया था। उसके बाद से वह छत्तीसगढ़ कांग्रेस संचार विभाग के चेयरमैन सुशील आनंद शुक्ला के अलावा भूपेश समेत पूरी कांग्रेस पर हमलावर थीं। यहां तक कि उन्होंने प्रियंका गांधी के छत्तीसगढ़ प्रवास को लेकर भी अपने एक्स अकाउंट पर तंज कसा था। राधिका के एक्शन को चुनाव के नजरिए से पहले दिन से ही भाजपा ने हाथोंहाथ लिया था, लेकिन पार्टी के किसी बड़े नेता का इस तरह का बयान नहीं आया कि राधिका भाजपा में शामिल हो जाएं। इस मामले में पीसीसी अध्यक्ष दीपक बैज भी सधी हुई टिप्पणियां कर रहे हैं। उन्होंने शनिवार को दोनों पक्षों का बयान लिया, लेकिन कोई टिप्पणी किए बिना कहा कि तथ्य इकट्ठा कर लिए हैं, फैसला एआईसीसी को करना है। भूपेश बघेल भी तीन दिन पहले सधी हुई टिप्पणी कर चुके हैं कि विवाद की जांच हो जाएगी, जो दोषी पाया जाएगा, उसे सजा मिलेगी। लेकिन कोई दोषी या निर्दोष ठहराया जाता, उससे पहले ही राधिका ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।
जिस गुटबाजी की बातें फिर चल रही हैं, आखिर उसके केंद्र में कौन-कौन
छत्तीसगढ़ कांग्रेस में गुटबाजी की चर्चाएं तब शुरू हुई थीं, जब भूपेश बघेल के सीएम रहते हुए ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री का मामला उछल गया था। हालांकि उस समय लगभग पूरी कांग्रेस भूपेश के साथ खड़ी नजर आ रही थी। कुछ अरसे बाद यह विवाद थम गया, लेकिन प्रदेश प्रभारी के रूप में कुमारी सैलजा के छत्तीसगढ़ आने के बाद गुटबंदी की बातें फिर शुरू हो गई थीं। जो कांग्रेसी भूपेश के समर्थक नहीं हैं, कुमारी सैलजा के इर्द-गिर्द अधिकांशतया उन्हीं को देखा जाने लगा था। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश कांग्रेस के छपे-छपाए 10 लाख से ज्यादा पोस्टर डंप करने की घटना इसी गुटबाजी का चरम थी। सैलजा के जाने के बाद सचिन पायलट आए तो प्रदेश कांग्रेस का माहौल कुछ बदला। इस बीच राधिका संचार विभाग की कोआर्डिनेटर बनाकर छत्तीसगढ़ भेज दी गईं। जानकारों के मुताबिक राधिका के आसपास भी कुछ दिन में वही नेता नजर आने लगे थे, जो भूपेश समर्थक नहीं माने जाते हैं। दरअसल विवाद की जड़ इसे ही माना जा रहा है, क्योंकि सुशील आनंद को भूपेश समर्थक माना जाता है।
इस्तीफा ही दे दिया, इसलिए अब उनके पक्ष में फैसला संभव नहीं लगता
कुछ कांग्रेस नेताओं का कहना है कि राधिका मामले में कांग्रेस आलाकमान उनके पक्ष में फैसला ले सकता था, क्योंकि एआईसीसी महिला नेताओं की शिकायतों को गंभीरता से लेती है। लेकिन अब राधिका के पक्ष में फैसला इसलिए मुश्किल है, क्योंकि दो-तीन महीने से उनके बारे में दिल्ली में कांग्रेस गलियारों में भी चर्चाएं थीं कि पार्टी की रीति-नीति को लेकर उनकी नाराजगी झलकने लगी है। और अब इस्तीफे के लिए उन्होंने जो पत्र लिखा है, कांग्रेस के जानकारों के मुताबिक इसके बाद उनका इस्तीफा स्वीकार कर किनारा कर लेने के अलावा कोई गुंजाइश फिलहाल नजर नहीं आ रही है।