कवासी तो कहते थे कि बेटे (हरीश या बैज) लड़ेंगे… पर खुद ही टिकट लेकर आ गए
प्रदेश अध्यक्ष का टिकट कटा, या मना करना पड़ा भारी
कोंटा विधायक तथा पूर्व मंत्री कवासी लखमा बस्तर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार बना दिए गए हैं। कल तक प्रदेश में कांग्रेस के 5 टिकट बचे थे, जिनमें सिर्फ बस्तर का ही ऐलान हुआ। कवासी के टिकट से कांग्रेसी भी चकित हैं, क्योंकि तीन दिन पहले उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि बस्तर से बेटों (हरीश कवासी, दीपक बैज को भी वे बेटे जैसा मानते हैं) में से ही कोई चुनाव लड़ेगा। जानकारों के मुताबिक कांग्रेस ने ऐसा होने नहीं दिया। बात ये हुई कि कवासी जीते तो कोंटा सीट खाली करनी होगी। तब भले ही बेटे के नाम पर विचार हो सकता है। परिणाम आशातीत नहीं रहे, तो फिर कोई बात ही नहीं है।
कवासी लखमा को बस्तर का टिकट जैसे ही मिला, बस्तर से रायपुर तक कांग्रेसियों में चर्चा थी कि आखिर कौन ही वजह थी कि बस्तर के वर्तमान सांसद तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बैज का टिकट काटना पड़ा। चर्चा में यह बात आई कि बैज का टिकट काटने की मंशा नहीं थी। पहली सूची में जब ज्योत्सना महंत का नाम फाइनल हुआ, तभी बैज का टिकट भी तय हो गया था। बताते हैं कि खुद बैज ने आला नेताओं से कहा कि वे चुनाव नही लड़ना चाहते, प्रदेश की 11 लोकसभा सीटों पर प्रचार करना चाहते हैं। पार्टी ने तुरंत यह बात मान ली। कांग्रेस में यह बात तो है कि अगर एक बार किसी ने मना कर दिया, तो फिर दोबारा कोई मानता नहीं है। बताते हैं कि बाद में बैज ने चुनाव लड़ने का मन बना लिया था। चूंकि वे पहले मना कर चुके थे, इसलिए बात बनी नहीं। तब तक लखमा पिता-पुत्र दिल्ली में सक्रिय हो गए थे, इसलिए फायदा हुआ। यह बात अलग है कि लखमा अपने बेटे के लिए लोकसभा टिकट चाह रहे थे। प्रदेश की राजनीति से अभी उनका मोहभंग नहीं हो पाया है।
फिर विधानसभा चुनाव के किस्से बाहर निकले…
बस्तर में विधानसभा चुनाव चल रहे थे, तब दक्षिण बस्तर और लगी हुई चार-पांच सीटों पर कांग्रेसी की कांग्रेसियों के लिए क्या कर रहे थे, यह चर्चाएं मुश्किल से थमी थीं। कवासी को टिकट मिलने के बाद सब एक बार फिर सतह पर आ गईं। बताते हैं कि विधानसभा चुनाव के ठीक बाद दिल्ली में आला कांग्रेस नेताओं से बस्तर के कुछ प्रभावशाली कांग्रेस प्रत्याशियों ने शिकायत की थी कि उनकी सीट पर उन्हीं की पार्टी के एक नेता ने पैसे पुश किए थे। इनमें से एक कद्दावर प्रत्याशी को अपनी सीट से हार का सामना करना पड़ा था। फिर कुछ और प्रत्याशियों ने दबी जुबान में यही बातें कहीं। चर्चा है कि एक जीते हुए प्रत्याशी ने भी अपने क्षेत्र में अपनी ही पार्टी के लोगों की ओर से भेजे गए पैसे पकड़े थे। इन बातों का कोई सबूत नहीं है। आला नेताओं को इन बातों की जानकारी है। इस तरह की बातें फिर सतह में आने का मतलब यही निकाला जा रहा है कि तीन माह पहले जिसने जो बोया था, उसे क्या वही काटना पड़ जाएगा।