रायपुर और बिलासपुर में VOTING DISASTER… राजधानी में सवा 5 लाख ने वोट नहीं दिया… बिलासपुर में भी ढाई लाख वोटर नहीं निकले

नगरीय निकाय चुनावों में शहरों में कम वोट पड़े हैं और दो-तीन चुनावों से पड़ते आ रहे हैं, लेकिन इस बार तो रायपुर और बिलासपुर जैसे बेहद जागरुक शहरों में मतदान के फाइनल आंकड़े आ रहे हैं, वह किसी डिजास्टर यानी आपदा से कम नहीं हैं। आपदा इसलिए कि रायपुर में 10 लाख 36 हजार वोटर हैं और मतदान के अनंतिम आंकड़े 49.55 फीसदी ही हैं, यानी राजधानी के तकरीबन 5 लाख 20 हजार से ज्यादा मतदाताओं ने वोट ही नहीं दिया है। बिलासपुर नगर निगम में 5 लाख से ज्यादा मतदाता हैं और वहां 51 फीसदी से कुछ अधिक मतदान हुआ। यानी वहां भी ढाई लाख से ज्यादा वोटर मेयर और पार्षद चुनने के लिए घरों से ही नहीं निकले। छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव में मतदान के जो आंकड़े आ रहे हैं, उनके मुताबिक प्रदेश के 10 नगर निगम, 49 नगरपालिका और 114 नगर पंचायतों में कुल 72 फीसदी मतदान हुआ है। लेकिन नगर निगमों में रायगढ़ को छोड़कर बाकी जगह मतदान कम ही है। आंकड़े नगर पंचायतों हुए मतदान से बढ़े हैं।
राजधानी रायपुर में पिछले नगर निगम चुनाव में 55 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ था। इस बार रायपुर नगर निगम चुनाव में जिस तरह की खींचतान थी, भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज जुटे हुए थे, पार्षदों में भी जिस तरह एक-एक वोट के लिए होड़ मची थी, उससे लगता था कि इस बार वोटिंग पिछले चुनाव से काफी अधिक हो सकती है। लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा है। रायपुर में 50 फीसदी से भी कम मतदान ने न सिर्फ सरकारी अफसरों, बल्कि नेताओं को हैरान कर दिया है। आप यकीन करेंगे कि पार्षद चुनावों को लेकर हर वार्ड में जबर्दस्त तनाव दिख रहा था, लेकिन मतदान ने साबित किया कि रायपुर के आधे से ज्यादा लोगों ने शहर सरकार में कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई। कम वोटिंग को लेकर भाजपा और कांग्रेस, दोनों के अपने-अपने तर्क हैं। कई एग्जिट पोल भी चुपके-चुपके जारी हो चुके हैं। लेकिन हकीकत ये है कि कम मतदान ने रायपुर के तमाम चुनावी ज्ञानियों को परेशानी में डाल दिया है। वे कोई भी कारण नहीं बता पा रहे हैं। सिर्फ यही कह रहे हैं कि मिडिल क्लास और पढ़े-लिखे लोगों में न जाने मतदान के प्रति रुचि क्यों कम होती जा रही है। खैर, जो स्थिति रायपुर की है, वैसी ही बिलासपुर नगर निगम की भी है। वहां भी 5 लाख से ज्यादा वोटर हैं, लेकिन मतदान का अनंतिम आंकड़ा 51 फीसदी के आसपास का है। इस लिहाज से वहां भी तकरीबन ढाई लाख वोटर्स (कुछ कम या ज्यादा) ने महापौर और पार्षद चुनने में कोई रुचि ही नहीं दिखाई है। जानकारों का कहना है कि कम वोटर वाले तथा तकरीबन ग्रामीण परिवेश वाले नगर निगमों में ही वोटर अधिक हैं, बाकी शहरी परिवेश वाले बड़े नगर निगमों में यही स्थिति नजर आ रही है।