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The Stambh Analysis : कांग्रेस में टिकट वितरण पर गहराया गुस्सा… सभी क्षत्रप अपने घरों में हारे, निशाने पर सिर्फ बैज… हार पर तुरंत समीक्षा की उठने लगी मांग

नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में पहली बार बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। इस करारी हार की वजह से पार्टी का समूचा प्रदेश नेतृत्व मंझौले नेताओं-कार्यकर्ताओं के निशाने पर आ गया है। नगर निगम से नगरपालिका तक, तकरीबन हर बड़े टिकट पर सवाल उठ रहे हैं। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सरकार से हाथ धोना पड़ा था, तब भी आरोप लगे थे कि कुछ टिकट ऐसे लोगों को दिए गए थे, जिनके बारे में पता था कि हार जाएंगे, फिर भी ऐसा किया गया। लोकसभा चुनाव में कोरबा को छोड़कर बाकी 10 पर कांग्रेस का सूपड़ा एक बार फिर साफ हुआ, तब सवाल उठे कि क्या संसदीय चुनाव लड़ने लायक नेता दुर्ग जिले में ही उत्पन्न हो रहे हैं, बाकी प्रदेश में नहीं। अब कांग्रेस तीसरा चुनाव बुरी तरह हारकर बैठी है। इस बार तो टिकट वितरण पर सीधा अटैक हो रहा है। रायपुर में पार्टी ने ऐसे आधा दर्जन पूर्व पार्षदों के टिकट काटे, जिन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़कर जोरदार परफार्म किया और कांग्रेस के एक बागी ने तो चुनाव भी जीत लिया। एक अपुष्ट खुलासा यह भी हुआ है कि महामंत्री मलकीत गैंदू जगदलपुर से चुनाव नहीं लड़ना चाह रहे थे, फिर भी पार्टी ने उन्हें उतारा और वे हार गए। कांग्रेस के कुछ बड़े नेता दबी जुबान से कह रहे हैं कि चार-पांच लोगों ने मिलकर सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर भी बड़ा खेला किया, जो भारी पड़ा है। ज्यादातर कांग्रेसी चाह रहे हैं कि जिन लोगों ने टिकट बांटे, एक बार उन्हें पार्टी के साथ व्यापक समीक्षा बैठक में हिस्सा लेना चाहिए, ताकि यह तो पता चले कि जिम्मेदार कौन है।

पिछले दो दिन में पूर्व मंत्री अमरजीत भगत और पूर्व विधायक कुलदीप जुनेजा ने पार्टी नेतृत्व को टिकट वितरण के मामले में निशाने पर लिया है। यह बात अलग है कि दोनों ही अपना पिछला चुनाव हारे हुए हैं। पार्टी के जानकारों का कहना है कि कुलदीप को शहर में हार से ज्यादा दुख इस बात का है कि उनके खिलाफ निर्दलीय लड़ने वाले एक युवा नेता की पार्टी में वापसी क्यों हुई, क्योंकि जितने वोटों से वे हारे थे, बागी को लगभग उतने ही वोट मिले थे। खैर, रायपुर नगर निगम में हुए टिकट वितरण पर तो गंभीर चर्चाएं हैं। यहां दो टिकटों से कांग्रेस ही नहीं, भाजपा भी हैरान थी और एक वार्ड में हार भी हुई। इसके अलावा, शहर में कांग्रेस का बागी पूर्व पार्षद चुनाव जीता और कम से कम चार बागी ऐसे हैं, जिन्होंने अपने वार्डों में निर्दलीय लड़कर भारी वोट पाए। तकरीबन जीतने वाले इन पार्षदों का टिकट क्यों और किसने काटा था, इस पर भी बहस छिड़ी है। सिर्फ रायपुर ही नहीं, ऐसे कई केस प्रदेश की हर नगर निगम और नगरपालिका में हैं। पार्टी के मंझौले नेताओं का दबी जुबान में कहना है कि इस बार समीक्षा जिलेवार होना चाहिए, ताकि एक-एक टिकट पर बात हो सके। इस तरह की समीक्षा से कई मामलों में सही स्थिति पता चलेगी।

कांग्रेस में टिकट वितरण पर सवालों के घेरे में प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज हैं, लेकिन उनके कुछ समर्थकों का कहना है कि वे टिकट बांटने वाले अकेले नहीं हैं। कई और क्षत्रप हैं, जिन्होंने अपने क्षेत्रों के टिकट वितरण में तो किसी को हाथ धरने नहीं दिया, बल्कि दूसरे के इलाके में भी कुछ टिकट दिलवा ही दिए। जिन्हें टिकट दिया, उनमें से अधिकांश चुनावी समर में खेत रहे। कांग्रेसी यह भी जानते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष की टिकट वितरण में भूमिका रहती है, लेकिन छत्तीसगढ़ में वही वन मैन शो नहीं हो सकता। यहां हमेशा ही कई क्षत्रप रहे हैं, जो पूरी ताकत के साथ टिकट वितरण में हिस्सा लेते हैं और अपने लोगों को टिकट दिलवाते हैं। टिकट नहीं दिलवा पाए तो बी-फार्म में सफेदा लगाकर प्रत्याशी का नाम बदल देने का इतिहास भी छत्तीसगढ़ कांग्रेस में रहा है। बता दें कि तीन दशक पहले बी-फार्म में वाइटनर से प्रभावित दो नेताओं में से एक अभी प्रदेश में कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति में हैं, और दूसरे भी प्रभावशाली माने जाते हैं। बहरहाल, कांग्रेस इस हार की समीक्षा करेगी या नहीं, यह पंचायत चुनाव के नतीजों के बाद ही स्पष्ट होगा। बैज के अलावा नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत और टीएस सिंहदेव समेत पार्टी के सभी छत्रप अभी छत्तीसगढ़ में ही हैं। पूर्व सीएम भूपेश बघेल भी राष्ट्रीय महासचिवों की बैठक में हिस्सा लेकर कल शाम को रायपुर लौट रहे हैं। प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ऐसे किसी मौके पर आसानी से आ सकते हैं। समीक्षा बैठक का आयोजन बहुत मुश्किल काम नहीं है, लेकिन हो सकता है कि इस बैठक के गंभीर साइड इफेक्ट के अंदेशे से संगठन ऐसे किसी भी आयोजन को कुछ समय तक टाल दे।

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