छत्तीसगढ़ के अधिकांश विभाग 1 लाख आउटसोर्स कर्मियों के भरोसे… लेकिन इन्हें मुट्ठीभर वेतन और शून्य सुविधाएं… फेडरेशन दिसम्बर में करेगा बड़ा आंदोलन

छत्तीसगढ़ में बिजली कंपनियां, नगरीय निकाय, आबकारी, श्रम विभाग, अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, स्कूल छात्रावास, सहित लगभग हर विभाग अब आउटसोर्स कर्मचारियों के भरोसे है। इनकी संख्या प्रदेश में 1 लाख से अधिक हो चुकी है। आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए न सही भर्ती नियम हैं, न ढंग की सेवा शर्तें और वेतन बहुत ही कम है। इस वजह से आउटसोर्स कर्मचारियों का असंतोष बढ़ता जा रहा है। छत्तीसगढ़ प्रगतिशील अनियमित कर्मचारी फेडरेशन ने दिसम्बर में आउटसोर्स कर्मचारियों के बड़े आंदोलन की घोषणा कर दी है।
फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल प्रसाद साहू की ओर से जारी बयान में बताया गया कि क्लास 3 और 4 को मिलाकर प्रदेश में कुल 1 लाख से अधिक आउटसोर्स कर्मी 100 से अधिक एजेंसी के माध्यम से विभागों में सेवा दे रहे हैं। फेडरेशन के मुताबिक इन कर्मियों को कोई पीएफ, ग्रेच्युटी जैसी सुविधाएं नहीं हैं जबकि वेतन न्यूनतम मजदूरी से भी कम मिलता है। इस प्रकार प्रदेश युवाओं शोषण किया जा रहा है| सरकार को हर साल औसतन 276 करोड़ से अधिक राशि का नुकसान भी हो रहा है। अर्थात, प्रति कर्मचारी मासिक वेतन 10000 पर 1 लाख कर्मचरियों का 12 माह में 1200 करोड़ का भुगतान किया जा रहा है, इस प्रकार 18 प्रतिशत जी एस टी एवं औसत 5 प्रतिशत एजेंसी का सेवा शुल्क पर 276 करोड़ दिया जा रहा है|
छत्तीसगढ़ प्रगतिशील अनियमित कर्मचारी फेडरेशन छत्तीसगढ़ प्रदेश के शासकीय कार्यालयों में कार्यरत अनियमित कर्मचारियों के नियमितीकरण/स्थायीकरण, निकाले गए कर्मचारियों की बहाली, न्यून मानदेय कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन दिए जाने, अंशकालीन कर्मचारियों को पूर्णकालीन करने, आउट सोर्सिंग/ठेका/सेवा प्रदाता/समूह-समिति के माध्यम से नियोजन सिस्टम बंद करने सहित विभिन्न मांगो पर आवेदन निवेदन, आन्दोलन के माध्यम से निरंतर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराता रहा है।
बता दें कि ये अनियमित कर्मचारी विगत 20-25 साल से किसी न किसी प्रकार से शासन की जनहितकारी योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका में सतत् रूप से कार्यरत हैं किन्तु विडम्बना ही है कि सरकार भी कोई सुध नहीं ले रही है| वर्तमान में इनकी स्थिति मध्यकालीन बन्धुआ मजदूर से भी बदतर है। पारिवारिक जिम्मेदारी, आर्थिक असुरक्षा, बेरोजगारी, प्रशासनिक दबाव के कारण अपने विरुद्ध हो रहे अन्याय को सहने विवश हैं।



