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नेशनल हाईवे के लिए अबूझमाड़ के साथ-साथ कई पैच का डीपीआर ड्रोन की मदद से… नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में इंजीनियरों ने फोर्स के साथ ड्रोन उड़ाया, तब बना खाका

बस्तर का नाम आते ही नक्सलवाद और फोर्स की बातें होती हैं, लेकिन आपको बता दें कि नक्सल आतंक के बीच अब विकास भी तेज हो रहा है। यह बात अलग है कि सीएम विष्णुदेव साय की निगरानाी में शुरू हुए विकास के इन कार्यों के लिए उच्च तकनीक की जरूरत पड़ रही है। जैसे, कोंडागांव से नारायणपुर होकर गढ़चिरौली तक बन रहे नेशनल हाईवे 130-डी की बात करते हैं। बहुत बड़ी दूरी को इस सड़क ने घने जंगल-पहाड़ों और घाटियों के साथ नक्सल आतंक के बीच से गुजारते हुए केवल सिर्फ 112 किमी पर ही समेट दिया है। लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है।  पीडब्लूडी सचिव आईएएस डा. कमलप्रीत सिंह बताते हैं कि इस सड़क के कुछ पैच ऐसे हैं, जहां धरातल पर जाकर डीटेल्ट प्रोजेक्ट रिपोर्ट नहीं बन सकती। वहां इंजीनियरों ने ड्रोन का सहारा लिया है। दिक्कत ये है कि फोर्स के बगैर इंजीनियर ड्रोन लेकर अबूझमाड़ तथा दूसरे जंगलों में नहीं घुस सकते। क्योंकि टैरेन बहुत दुरूह है और खतरा भी है। इसलिए कई पैचेस में ड्रोन उड़ाकर डीपीआर बनाया गया, तब केंद्रीय और राज्य सुरक्षाबलों की दो-दो कंपनियों तक को डिप्लाय करना पड़ा है।

नेशनल हाईवे 130-डी नया हाईवे नहीं है। यह 80 के दशक में स्टेट हाईवे के रूप में मंजूर हुआ और सिंगल सड़क बनी। आप अभी भी चाहें तो नारायणपुर से कोंडागांव तक इस सड़क से जा सकते हैं। काम भी यहीं चल रहा है। लेकिन नारायणपुर से गढ़चिरौली के लिए बढ़ेंगे तो कुछ किमी चलेंगे, तब समझ आ जाएगा कि इस सड़क को साय सरकार ने नेशनल हाईवे में क्यों कनवर्ट करवाया। दरअसल आधी सदी में तब का सिंगल स्टेट हाईवे कई जगह इस तरह टूटा है कि सड़क के नाम पर डब्लूबीएम रोड जैसी पट्टी ही बची है। इसे ही चौड़ा किया जा रहा है, ताकि बड़े वाहन भी चल सकें और 112 किमी का सफर रफ्तार के साथ पूरा किया जा सके। इस सड़क के बन जाने के बाद यहां फोर्स के साथ-साथ माइनिंग वाले वाहनों के भी काफी आसानी होने वाली है।

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