नक्सलियों की मांद में 50 किमी की खतरनाक गंगालूर रोड का 11 किमी काम ही बचा… डिप्टी सीएम साव-सचिव कमलप्रीत वहीं पहुंचे
छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नेलसनार से गंगालूर तक बन रही 50 किमी सड़क के बारे में जान लीजिए कि यह भी नक्सलियों की मांद से ही गुजर रही है। अरनपुर-जगरगुंडा के बीच 18 किमी की सड़क बनाने में निर्माण एजेंसियों के साथ फोर्स को जितना तालमेल करना पड़ा था, यहां भी कई जगह वही स्थिति है, पर काम जारी है। इस निर्माणाधीन सड़क पर ऐसे कई गांव हैं, जिन्हें अब तक नक्सलियों का गढ़ कहा जाता रहा है। 50 किमी की यह सड़क बस्तर के बेहद घने जंगलों से गुजर रही है। इसके 39 किमी हिस्से का निर्माण पूर्ण कर लिया गया है, 11 किमी का काम बाकी है।
डिप्टी सीएम अरुण साव पीडब्लूडी सेक्रेटरी डा. कमलप्रीत सिंह और पीएचई सेक्रेटरी कैसर अब्दुल हक के साथ इस सड़क का जायजा लिया और इसके निर्माण में आने वाली रुकावटें दूर करने पर बात की। इस निर्माणाधीन सड़क पर पहाड़ों और नालों की वजह से कई छोटे-बड़े पुल बन रहे हैं। छोटी घाटियां और खतरनाक मोड़ हैं। इससे भी ज्यादा खतरनाक बात ये है कि पूरी सड़क धुर नक्सल प्रभावित इलाके से गुजर रही है।. यहां निर्माण बहुत मुश्किल था, लेकिन 39 किमी तक काम कर लिया गया है। डिप्टी सीएम साव ने हर बिंदु की समीक्षा के साथ-साथ अफसरों से कहा कि इस 11 किमी हिस्से को भी जल्दी बनाना है, ताकि इस सड़क के जरिए विकास नक्सल प्रभावित आखिरी गांव तक पहुंचे। इस टीम ने भैरमगढ़ के फुंडरी में बन रहे बड़े पुल का जायजा भी लिया। यह भी धुर नक्सल प्रभावित इलाके में बन रहा है और बीजापुर को नारायणपुर से जोड़ने वाली महत्वपूर्ण कड़ी होगा। इस पुल के बनने से रायपुर से बीजापुर की दूरी कम हो जाएगी, साथ ही नारायणपुर से सीधे बीजापुर जाने का एक वैकल्पिक मार्ग भी मिलेगा, यानी जगदलपुर से गीदम होकर बीजापुर नहीं जाना पड़ेगा। डिप्टी सीएम साव ने अफसरों से कहा कि सड़क और पुल, दोनों के निर्माण के लिए जहां भी जरूरत हो, फोर्स के सुरक्षा कैम्प लगाने में किसी तरह की देरी नहीं की जाए। उन्होंने अफसरों और निर्माण कंपनियों से गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए दोनों कार्यों को समय-सीमा में पूर्ण करने के निर्देश दिए और कहा कि उन्होंने कहा कि नक्सल प्रभावित अति संवेदनशील क्षेत्र में निर्माणाधीन ये सड़क और पुल बीजापुर जिले के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इनके निर्माण से शासन-प्रशासन पर ग्रामीणों का भरोसा बढ़ेगा। साथ ही इनसे माओवादी घटनाओं पर अंकुश लगाने में भी सहायता मिलेगी।