सेटिंग NEXT LEVEL पर ! छत्तीसगढ़ में 211 स्कूल ऐसे थे, जिनमें टीचर थे पर स्टूडेंट्स वर्षों से जीरो… इनमें अब हुआ छात्रों और टीचर्स का सही समायोजन

छत्तीसगढ़ के स्कूलों में सीएम विष्णुदेव साय के निर्देश पर युक्तियुक्तकरण क्या शुरू हुआ, एक के बाद एक भांडे फूट रहे हैं। सेटिंग के चक्कर में कई बीईओ और डीईओ तक सस्पेंड हुए हैं और सेटिंग भी ऐसी वैसी नहीं, बल्कि नेक्स्ट लेवल पर जा चुकी है। जैसे, प्रदेश में 211 स्कूल ऐसे निकल गए, जहां स्टूडेंट एक भी नहीं थे, लेकिन टीचर पदस्थ थे। आप समझ सकते हैं कि ऐसे स्कूल में टीचर या तो नहीं जाते होंगे, या फिर मुँह दिखाई की रस्म करके लौट आते होंगे। युक्तियुक्तकरण और समायोजन से अब इस स्थिति में सुधार शुरू हुआ है, फिर भी कुछ काम बाकी ही है।
सरकारी आंकड़े ही बता रहे हैं कि राज्य के लगभग 212 प्राइमरी स्कूल और 48 पूर्व माध्यमिक शालाएं पूरी तरह से शिक्षक विहीन थीं, जबकि 6,872 प्राथमिक शालाएं और 255 पूर्व माध्यमिक शालाएं केवल एक शिक्षक के साथ संचालित हो रही थीं। इसके अलावा 211 शालाएं ऐसी थीं जहाँ छात्र संख्या शून्य थी, लेकिन शिक्षक पदस्थ थे। 166 शालाओं को समायोजित किया गया, इसमें ग्रामीण क्षेत्रों की 133 शालाएं शामिल थीं, जिनकी दर्ज संख्या 10 से कम थी और दूरी 1 किमी से कम थी, तथा शहरी क्षेत्रों की 33 शालाएं थीं, जिनकी दर्ज संख्या 30 से कम थी और दूरी 500 मीटर से कम थी।
युक्तियुक्तकरण से पहले, छत्तीसगढ़ राज्य के ग्रामीण अंचल की शालाओं में शिक्षकों की कमी, नगरीय इलाकों और उसके समीप की शालाओं में जरूरत से ज्यादा शिक्षकों की पदस्थपना के कारण शिक्षा प्रभावित हो रही थी और इसका असर बच्चों के परीक्षा परिणाम पर भी पड़ रहा था। इन चुनौतियों के बावजूद, छत्तीसगढ़ का छात्र-अध्यापक अनुपात (पीटीआर) राष्ट्रीय औसत से उल्लेखनीय रूप से बेहतर था, प्राथमिक शालाओं के लिए पीटीआर-20 था, जबकि राष्ट्रीय औसत 29 है और पूर्व माध्यमिक शालाओं के लिए पीटीआर-18 था, जबकि राष्ट्रीय औसत 38 है। हालांकि, वितरण असमान था। राज्य में लगभग 17,000 प्राथमिक शालाएं और लगभग 4,479 पूर्व माध्यमिक शालाएं थीं, जिनका पीटीआर-20 से कम था। अकेले शहरी क्षेत्रों में 527 ऐसे विद्यालय थे, जिनका पीटीआर-10 से कम था, जिनमें 15 या उससे अधिक शिक्षकों वाली 08 प्राथमिक शालाएं, 10-15 शिक्षकों वाली 61 शालाएं और 6-9 शिक्षकों वाली 749 प्राथमिक शालाएं थीं, ये आंकड़े बेहतर संसाधन आवंटन की जरूरत को दर्शाते हैं।